प्रतिभा
प्रतिभा
कदम कदम पर अनुपम प्रतिभा,बन जाती प्रिय स्वर्णिम कविता।
बहने लगती धरा धाम पर,बनकर पावन अमृत सरिता।
अभिवादन के काबिल प्रिय हो,सारे जग की पीड़ा हरती।
जिसपर प्रभु की कृपा दृष्टि हो,उसको तुम अपनाकर रहती।
भाग्यवान तुझको पाता है,यही सुनिश्चित बात निराली।
जिसको अपने भीतर रखती,वह पीता अमृत की प्याली।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।