प्रकृति से सीखो
किसी से न सीखो ।
तुम सिर्फ प्रकृति से सीखो ।
पर्वत सा अडिग रहना ।
सागर सा लहराते रहना ।
फूलो से हँसते रहना ।
दीपक सा जलते रहना ।
हवा, तूफान गर भी आए ।
उसमे अडिग रहना ।
बस यही चाह मेरी ।
किसी से न सीखो ।
तुम सिर्फ प्रकृति से सीखो ।
चींटी सा आलस्य त्यागना ।
काम मे जुटे रहना ।
शार्दूल सा निर्भीक होना ।
बगुले सा ध्यान होना ।
केवल लक्ष्य को भेदना ।
कौए सा शातिर होना ।
श्वान सा नींद होना ।
सरिता के जल से बहते रहना ।
कभी न ठहरना ।
मंजिल तक पहुंच कर ही फहरना ।
याद करे सारी दुनिया ।
कुछ ऐसा करके मरना ।
कहने का मतलब मेरे ये नही ।
कि आतंक के घेरे मेरे रहना ।
धिक्कारे सारी दुनिया ऐसा ।
कोई कार्य न करना ।
मां -बाप भाई बहन ।
सबके सुख के चक्र बनना ।
सूर्य सा तेज होना ।
पृथ्वी सा धैर्य होना ।
राजपूतो सा शौर्य होना ।
कोयल सा राग होना ।
जलाकर राख कर दे सबको ।
ऐसी आग होना ।
ठहर गए जो कही जीवन मे ।
समझो है अब विनाश होना ।
मान सम्मान कम होना ।
स्वार्थी है दुनिया ।
बिना मतलब के नही पूछेगी ।
धरा कभी भी नही रुकेगी ।
कर्म अपना सदैव करते रहना ।
बस यही चाह मेरी ।
किसी से न सीखो ।
तुम सिर्फ प्रकृति से सीखो ।
दत्तात्रेय मुनि ने प्रकृति को माना ।
अपना गुरू ।
सारा गुण भर गया उनमे ।
क्योंकि प्रकृति ही है ।
सबसे बङी ।
बस यही चाह सभी अभिसार की ।
किसी से ने सीखो ।
तुम सिर्फ प्रकृति से सीखो
Rj Anand Prajapati