प्रकाश पर्व
एक दीप माटी का तू प्रज्ज्वलित कर ला उजास
है यह माटी
धरा की तेरी
इसीलिए
प्रकाश की कर रही आस
माटी का कर्ज चुका
निज द्वार के आगे
इक माटी का
दीप सजा
यूँ पर्व प्रकाश का मना।
रंजना माथुर
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
एक दीप माटी का तू प्रज्ज्वलित कर ला उजास
है यह माटी
धरा की तेरी
इसीलिए
प्रकाश की कर रही आस
माटी का कर्ज चुका
निज द्वार के आगे
इक माटी का
दीप सजा
यूँ पर्व प्रकाश का मना।
रंजना माथुर
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना