प्यार से उसको ये गुलशन भी सजाते देखा
प्यार से उसको ये गुलशन भी सजाते देखा
उसको नफ़रत की वो दीवार गिराते देखा
था यक़ी सबको इधर आज न आयेगा वो
जबकि महफ़िलल पे उसे बात बनाते देखा
राज़ की बात है कुछ आज जो हरकत देखी
यूँ चुराकर के नज़र मुँह को छिपाते देखा
है न वो होश में बिल्कुल भी , लगे ऐसा है
ख़ुद से अपना ही उसे घर भी जलाते देखा
मन में गुस्सा भी मुहब्बत भी है उसके ‘आनन्द’
हक़ से हर बात सदा उसको निभाते देखा
डॉ आनन्द किशोर