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3 Dec 2022 · 2 min read

“प्यार के दीप” गजल-संग्रह और उसके रचयिता ओंकार सिंह ओंकार

“प्यार के दीप” गजल-संग्रह और उसके रचयिता ओंकार सिंह ओंकार
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हिंदी साहित्य संगम, मुरादाबाद द्वारा आयोजित काव्य गोष्ठी एवं श्री ओंकार सिंह ओंकार के सम्मान समारोह में मुझे दिनांक 2 दिसंबर 2018 रविवार को शामिल होने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ। ओमकार जी से यह मेरा प्रथम परिचय था। मुरादाबाद के प्रतिभाशाली कवि राजीव प्रखर जी ने हम दोनों का परिचय कराया। तत्पश्चात ओंकार जी ने मुझे अपनी पुस्तक गजल संग्रह” प्यार के दीप” भेंट की ।मुझे वहां काव्य पाठ का भी सुअवसर आयोजकों द्वारा दिया गया, जिसके लिए मैं सभी का आभारी हूं।
गजल संग्रह घर लौटने के बाद मैंने पढ़ा और यह पाया कि ओंकार जी की ग़ज़लों में एक प्रवाह है तथा साथ ही साथ उनमें सामाजिक बदलाव की एक छटपटाहट है । वह व्यक्ति के अंतर्मन को बदलने की गहरी इच्छा रखते हैं तथा आधुनिक जीवन मूल्यों में जिस प्रकार से अनेक प्रकार की विसंगतियां देखने में आ रही हैं, उनका चित्रण करने में वह भली प्रकार से समर्थ हैं।
पृष्ठ 56 पर उनके द्वारा लिखित गजल के एक शेर पर पर तो निगाह बिल्कुल ठहर सी गई:-
########################
इस तरह हम ने बढ़ाई शान हिंदुस्तान की
रेल बस दफ्तर सड़क पर पीक दिखती पान
की
########################
कितनी सादगी से स्वच्छता का संदेश बल्कि कहिए कि स्वच्छ भारत मिशन के प्रवक्ता के रूप में कवि हमारे सामने स्वयं को उपस्थित कर रहा है। फिर जरा यह देखिए, पृष्ठ 141:-
######################
आदमी ऊंचा उठा तो और भी तन कर मिला
हां मगर झुकता हुआ फल से लदा तरुवर
मिला
########################
यहां पर भी मनुष्य के भीतर विनम्रता की अनिवार्यता के गुण को कवि बखूबी प्रस्तुत कर रहा है और उसकी चाहत है कि प्रकृति से हम थोड़ा- सा तो सीख ले लें।
एक और शेर पर निगाह गई ,प्रष्ठ 120 :-
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इन विदेशी गुलाबों की खूबी है ये
गुलसिताँ में भी नकहत नहीं आजकल
########################
नकहत माने खुशबू । यह अर्थ ओंकार सिंह ओंकार जी ने अपनी पुस्तक में पृष्ठ के नीचे दिया हुआ है । उर्दू की प्रधानता क्योंकि इस समूचे गजल संग्रह में प्राय: सभी प्रष्ठों पर दिख रही है, अतः बहुत बड़ी संख्या में गजलें ऐसी हैं जिन के नीचे उर्दू शब्दों के अर्थ देना अनिवार्य हो जाता है।
पृष्ठ 34 पर एक और शेर ध्यान आकृष्ट करता है:-
#######################
गरीबी भुखमरी बेरोजगारी आबरूरेजी
न जाने और क्या क्या आज का बाजार देता
है
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वास्तव में कवि ओंकार जी शाश्वत सादगी पसंद ईमानदार जीवन मूल्यों के समर्थक हैं। यही उनकी काव्य की शक्ति है। डेढ़ सौ पृष्ठों की अपनी पुस्तक में वह इसी सादगी को बार बार हमारे पास तक पहुंचाते हुए नजर आते हैं । उनका व्यक्तित्व सचमुच सादगी से भरा हुआ है। बहुत सरल, दिखावे से दूर ,उनसे मिल कर और उनके गजल संग्रह को पढ़कर सचमुच बहुत प्रसन्नता हुई।
*********************************
समीक्षक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर ,उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451

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