= प्यार की खातिर =
खुशियाँ ही खुशियाँ होती जिन्दगी में,
तो गम बेचारा कहां जाता।
इसीलिये हमने जोड़ लिया उससे नाता।
जीत ही जीत होती अगर दुनिया में,
तो हार बेचारी कहां जाती।
इसीलिए मैंने बना लिया उसे अपना साथी।
अमीरी ही अमीरी होती इस जग में,
तो कहां जाती बेचारी गरीबी।
इसीलिए हमने उससे रिश्ता जोड़ा करीबी।
हंसी ही हंसी होती जो सारे जहान में,
तो रहती कहां बेचारी उदासी।
इसीलिये हम बन उस के नजदीकी निवासी।
छांव ही छांव में रहना चाहें सभी,
तो कहां जाती बेचारी धूप।
इसीलिये मैंने झोंका उसमें अपना रंग- रूप।
उजाले ही उजाले चाहता हरेक संसार में,
तो बेचारे अंधेरे का कहां हो बसेरा।
इसीलिए उसने डाला मेरे घर डेरा।
फूल ही फूल चुने सबने गुलशन से,
तो जाएं कहां बेचारे कांटे।
इसीलिए हमने अपने संग उसके गम बांटे।
न सोचें कि यह मैंने किया है कोई परमार्थ,
इस में निहित रहा है मेरा एक निज स्वार्थ।
चाहत थी मेरे अपनों पर सारे सुख उड़ेलूं,
ये तमन्ना थी उनके सारे गम खुद पर ले लूँ।
–रंजना माथुर दिनांक 04/09/2017
(मेरी स्व रचित व मौलिक रचना )
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