” प्यार का उपहार “
डॉ लक्ष्मण झा”परिमल”
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हम जाँबाज़ परिंदे
बन गए !
अपने पंखों को
फैलाये क्षितिज
पर छा गए !!
सारी दुनिया
हमारे छोटे से यंत्रों
में सिमट कर
रह गयी !
ज्ञान गंगा की
धारा इसमें सदा
बहने लगी !!
बिछुड़े हुए
दोस्तों की
कुछ टोलियाँ
हमें मिल गयीं !
हमारी बेशक बदली
शक्ल सूरत
की पहचान हो गयीं !
अब तो नए मित्रों
का चलन
सर चढके बोल
रहा है !
गाँव ,शहर ,देश
की बात कौन करे
विदेशों से जुड़
रहा है !!
सब विधाएं
यन्त्र से हम
अब धनुर्धर बन
गए हैं !
परमाणुओं की
युध्य कौशलता
के हुनर हमको
आ गए हैं !
पर बात चुभती है
ह्रदय को बेधती
और कोसती है !
संवाद और बातें
भूल कर
होती नहीं है !
संवाद से ही हम
उन्हें
जान जाते हैं !
कैसी उनकी
भावना है
पहचान जाते हैं !
हमारी लालसा
होती है
हम अधिक से अधिक
मित्रों को बनायें !
पर मित्र बनके
नहीं उचित है
पाताल में छुप जाएँ !
आपकी
समालोचनाओं
और टिप्पनिओं
से प्राण का
संचार होगा !
हम सदा जुडके
रहेंगे यही “प्यार का
उपहार होगा ‘!!
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज रोड
दुमका