पैरों में बेड़ियां हैं
पांवों में
बंधी होनी चाहिए थी
पायल
बजने चाहिए थे
चारों दिशाओं
हर ओर
फिजाओं में
उसके कंठ से फूटते खन खन खनकते
घुंघरुओं का शोर
यह तो शायद था एक
स्वप्न मात्र
सच्चाई क्या है
यथार्थ क्या है
जमीनी हकीकत क्या है
यह कहानी तो बताते हुए भी
शर्म महसूस होती है
इंसानियत से परे है सब कुछ
पैरों में बेड़ियां हैं
हाथों में जंजीरें हैं
मन के पंछी के पर भी
काट दिए गये हैं
वह न चल सकता है
न हिलडुल सकता है
न कहीं विचर सकता है
न कुछ विचार सकता है
न ही कुछ सोचने लायक बचा है
अब इस संसार में
जब घर के लोगों से
अपनाहट नहीं मिली तो
दुनिया की तरफ
उसका प्यार पाने के लिए
अपना मुंह मोड़ा
अपना सर्वस्व त्यागा
उम्मीद का सूरज तो तब डूबा
जब प्रेम के सारे
बंधन काटकर
आस से जगे सब रिश्ते तोड़कर
आकांक्षाओं की उड़ान के परों को
पैरों से कुचलकर
सिर से पांव तक
जंजीरों में जकड़कर
रेत में धंसाकर ही
उन्होंने उसे राहत की सांस ली।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001