#पेशावर रोंदा ए ज़ारो-ज़ार लोको
🙏दिसंबर २०१४ में लिखी गई इस कविता का पुनर्प्रसारण आवश्यक लगा जब देखा कि आज कुछ लोग जिन्ना को राष्ट्रभक्त बता रहे हैं। १२-३-२०२२
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हिमालय और सिन्धु के बीच के स्थान को ‘हिन्धुस्थान’ कहा गया। जो कि धीरे-धीरे ‘हिन्दुस्थान’ और फिर ‘हिन्दुस्तान’ कहलाने लगा।
बलोचों का देश बलोचस्तान, पश्तूनों का पश्तूनिस्तान, अफगानों का अफगानिस्तान, कजाकों का कजाकस्तान, ताजकों का ताजकस्तान, उजबेकों का उजबेकस्तान आदि-आदि।
ऐसे सभी देशों की भाषा अलग-अलग होने के बावजूद सभी के नाम के पीछे यह ‘स्तान’ क्या है?
वास्तव में यह ‘स्तान’ नहीं ‘स्थान’ है।
इससे यह पता चलता है कि पहले पूरी दुनिया की भाषा एक ही थी। जैसा कि बाइबल में भी लिखा है।
और निश्चित रूप से वो संस्कृत भाषा ही थी।
लेकिन, पाकिस्तान के साथ ऐसा नहीं है।
जब यह निश्चित लगने लगा कि मुस्लमानों को धर्म के आधार पर अपना एक नया देश मिलना वाला है तो यह चर्चा छिड़ी कि उस देश का नाम क्या होगा?
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, स्यालकोट के एक मुस्लिम विद्यार्थी की कल्पना है यह नाम। उसने एक लेख लिखा कि जो-जो प्रदेश नए देश में शामिल होंगे उनके नाम के पहले अक्षरों को जोड़कर नाम बना ‘पाकिस्तान’।
आप कविता पढ़ें और बात दिल को छुए तो दिल से शाबाशी देवें।
● वर्ष २०१४ में १६ दिसम्बर को हुए ‘पेशावर काण्ड’ पर लिखी गई पंजाबी कविता : ●
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★ #पेशावर रोंदा ए ज़ारो-ज़ार लोको ! ★
‘पे’ मंगया प्यारे पंजाब पासों
नाले उसदी वड्ढ लई सज्जी बाँह लोको
जित्थे गिद्दे भंगड़े नच्चदे ने
जित्थे सिर तली धरन दा चाअ लोको
जित्थे गुरुआँ दी बाणी गूँजदी
जित्थे वगदे पँज दरया लोको
जित्थे मनुखता दे कातल सिकंदर नूँ
महाराज पुरु ने भुँजे दित्ता लाह लोको
इक पासे कुज्झ दिसदै दया धर्म
दूजे पासे गुआची है गाँ लोको
जित्थे बदमाशां दा धरयै नाँअ शरीफ
जित्थे शराफत लई नहीं कोई थाँअ लोको
जित्थे लक्खाँ करोड़ाँ उजड़ गए
अते घर होए शमशान
जिन्नाह तेरा बण गया पाकिस्तान . . . . .
‘अलिफ’ लया अफगान तों
जित्थे मेवे बेशुमार
कुड़ी गुड्डियाँ पटोले खेडदी
जित्थे बण जांदी है नार
गरम जित्थे दियाँ घाटियाँ
हरिसिंह नलवे दित्तियाँ ठार
चोरा-डाकूआ-कातला
तूँ ओथों चोरी कीते अनार
लुट्ट दे माल नाल भर गई
तेरी एह दुकान
जिन्नाह तेरा बण गया पाकिस्तान . . . . .
‘काफ’ कड्ढया कश्मीर चों
हेठां सुन्नत जेही खिच्ची लकीर
धरती दे इस स्वर्ग नूँ ज़ालमा
तूँ विच्चों दित्ता चीर
जित्थे महकण केसर क्यारियाँ
जित्थे मेरी माता जेहलम दा ठंडा नीर
वारिनाग अनँतनाग चँदनवाड़ी सोभदे
जित्थे सजदी है मात भवानी खीर
जित्थे डेरा नाथां दे नाथ दा
जीहदी गाभे विच तस्वीर
भारतमाता दे इस शीश नूँ
तूँ दित्ती डाढी पीड़
रिशी कश्यप दी तपोभूमि बण गई
तेरी गुंडागर्दी दहशतगर्दी दा मैदान
जिन्नाह तेरा बण गया पाकिस्तान . . . . .
‘सीन’ सुझया तैनूँ सिंध तों
जेहड़ी धरती बेमिसाल
पुत्त जिसदे सोभो ते अडवानी लालकृष्ण
जिनां दी है नहीं कोई मिसाल
उस धरती दा वैरी वी की करे
जीहदा राखा साईं झूलेलाल
हनेरी झुल्ली जद ज़ुलम दी
धरती अकाश दोवें हो गए लाल
साईं गुसाईं दी अज्ज कोई पुच्छ नहीं
सच ते धरम दा भैड़ा हाल
ओहदा नाँअ-निशान है मिट गया
जिस लड़ना सी हज़ारां साल
प्यो मंगदा सी टैन परसैंट ऐपर
पूरे सौ नूँ भालदै मुर्गी दा चूज़ा पुत्त बिलाल
हुण नहीं रहे इतबार जोगे
यारी ला लई इनां चीनियाँ दे नाल
जित्थे-जित्थे तेरे पैर पए
सब भृष्ट होए अस्थान
जिन्नाह तेरा बण गया पाकिस्तान . . . . .
‘स्थान’ बुढ़क लया बलोचाँ दा पश्तूनाँ दा
तूँ पाई ऐसी वंड
ख़ान अब्दुल ग़फ्फार वेंहदा रह गया
ओहदे सुफने दी हो गई झंड
तुद्ध शतान दे मगर लग के
सच्चे मालक नूँ दित्ती कंड
अखीर भुज्जी रेत ही निकली
जो जापदी सी खंड
ख़ैर मँगदे हाँ आपणे बगानयाँ दी
तेरे मँजे हेठां ऐटम बम्ब
अज्ज बलोच मग्घदै मच्चदै विल्लकदै
सिरों न लैंहदी पंड
तीर निशाने तों खुँज्झया
ना हत्थ रही कमान
जिन्नाह तेरा बण गया पाकिस्तान . . . . .
वसीम अकरम दे उस्ताद इमरान खान दा
अज्ज जित्थे है अख्त्यार लोको
उस सोहणे बाग दा इक सुनहरी फुल्ल
पृथ्वीराज दा कपूर परिवार लोको
सूरज वाँग यूसुफ खान कला संसार अंदर
बण चमकयै दिलीपकुमार लोको
जित्थे सुंदरियाँ सुत्थणां च सोंहदियां ने
जित्थे पठान वी पहनण सलवार लोको
भोले पंछियाँ ने ऐसी चोग चुग्गी
हो गए ने शिकारी दे शिकार लोको
धी ध्याणी मलाला नूँ मार गोली
सुट्टयै पताललोक दे ऐन विचकार लोको
लै के नाँअ खुदा दा खुदा दे बंदयाँ ने
अज्ज दित्ता है खुदा नूँ मार लोको
हसदा खेडदा शहर पेशावर
अज्ज रोंदा ए ज़ारो-ज़ार लोको
ओहदी हवा च ऐसा ज़हर घुलयै
सारा शहर होयै बीमार लोको
ज़ख्मी पया बालक वी कूकदा है
मैं नसलां नूँ दयांगा मार लोको
दाऊदां लखवियाँ ते नाले हाफिज़ां दी
पिच्छे खड़ी है लंमीं कतार लोको
डालर लै के डेरे उजाड़न दा
इस कीता है इकरार लोको
पै के जून इनसान दी
तूँ कीते खतम इनसान
जिन्नाह तेरा सड़ जाए पाकिस्तान !
जिन्नाह तेरा सड़ जाए पाकिस्तान . . . . . !
नापाक अस्थान दे पाकियो
अजे कुज्झ नहीं विगड़या बेरां डुल्लयाँ दा
जो शामी घरां नूँ परत आवण
दोष नहीं उनां राहां भुल्लयाँ दा
नहा-धो के कंघी नाल सोहणा चीर कड्ढो
सिर तों लाह सुट्टो बोझ भैड़े जुल्लयाँ दा
सिर ते रही न पग्ग जे इज़्ज़त-माण वाली
की करनै कढाई वाले कुल्लयाँ दा
लुहार ना जुत्ती गंढदै
ना पाटे नूँ सींदी ए किरपान
पूरब वल नूँ तुर पओ
पैरां दे लब्भ निशान
न स्वर्ग लद्धा न हूरां मिल्लियाँ
झूठे निकले सब्भ फरमान
सच्चे साहब दा होयै अपमान
सच्चे साहब दा होयै अपमान . . . . .
जदों दे विछड़े हो डार कोलों
केहड़ी-केहड़ी थाँ-कुथाँ दा चट्टया जे
केहड़ा कीता जे वणज वपार यारो
की वट्टया जे की खट्टया जे
पँज-पँज वारी गोडे टेकदे हो
दस्सो खां किवें है मत्था फट्टया जे
जो बीजणा है सोई वड्ढणा है
सच्चाई तों कौण नट्ठ सकया जे
घराँं नूँ परतो घराँ वालयो
घर हुंदा नहीं कोई दुकान
माँ खड़ी है बाँहां खलार के
पुत्त बण के पाओ सनमान
आओ सारे मिल के बोलिए
जुग-जुग जीवे हिन्दुस्थान !
जुग-जुग जीवे हिन्दुस्थान !!
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२