*पेड़ के बूढ़े पत्ते (कहानी)*
पेड़ के बूढ़े पत्ते (कहानी)
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लॉकडाउन हट चुका है । दुकानें और बाजार पहले की तरह खुलने शुरू हो गए हैं। सड़कों पर चहल-पहल में भी अब कोई कमी देखने को नहीं मिलती । मुंह पर मास्क तो जरूर है ,लेकिन चिंता की बात अब किसी के चेहरे पर नजर नहीं आती है । रिश्तेदारियों में भी पहले की तरह आना-जाना शुरू हो चुका है ।
विमला देवी को यह सब देख कर अच्छा तो लग रहा है लेकिन यदा-कदा उनकी आँख से दो आँसू ढुलक ही पड़ते हैं। बहू निहारिका चुपके-चुपके उनकी हर गतिविधि पर नजर रखती है । सास को कोई तकलीफ न हो ,इसका पूरा ध्यान निहारिका को रहता है ।
आज भी कुछ ऐसा ही हुआ। विमला देवी अपने कमरे की बालकनी पर बैठे-बैठे सामने मैदान की ओर टकटकी लगाए देख रही थीं। बड़ा-सा पेड़ मैदान के बीचो-बीच न जाने कब से अविचल खड़ा हुआ है । पत्ते गिरते हैं ,पतझड़ छा जाता है और उसके बाद फिर नए पत्ते आ जाते हैं । पचास साल से ससुराल में प्रकृति का यह चक्र इसी बालकनी में बैठकर उन्हें देखने को मिला। कभी इस पतझड़ और वसंत ने उन्हें दुखी नहीं किया । हमेशा जीवन को उत्साह और उमंग के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा ही दी है। लेकिन अब न जाने क्यों उन्हें इस पेड़ में दुख की घनी यादें नजर आने लगी हैं।
निहारिका ने विमला देवी के कंधे पर हाथ रखा और पूछा ” माँजी ! आप रोजाना इस बालकनी में आकर पहले तो कितनी खुश रहती थीं, और अब थोड़ी देर बाद ही चेहरे पर विषाद की रेखाएं खिंच जाती हैं ? क्यो ? अब इस पेड़ में आप कौन सा दुख देखती हैं ? ”
“मैं इस पेड़ को देखती हूं , जिसने अपना बहुत कुछ खोया है।”
” पेड़ ने तो कुछ भी नहीं खोया ! पहले से ज्यादा हरा-भरा है ।”
“मैं नए पत्तों की बात नहीं कर रही । मैं उन बूढ़े पत्तों की याद कर रही हूं ,जो पेड़ से बिछड़े और फिर दोबारा इस पेड़ पर कभी नहीं दिखे ।”
निहारिका ने सास के दुख को समझ लिया । सांत्वना देते हुए कहा “जीवन और मृत्यु तो संसार का नियम है । पिताजी की मृत्यु का दुख तो हम सभी को है । ईश्वर का यही विधान था । इसके सिवाय संतोष करने का और कोई उपाय भी तो नहीं है ? ”
” मुझे मृत्यु का दुख नहीं है । वह तो एक दिन आनी ही थी । दुख तो इस बात का है कि एक आँधी आई और उसने उन पत्तों को भी गिरा दिया ,जो अभी काफी समय तक पेड़ के साथ जुड़े रहते ! “-विमला देवी की आंखों में अपने स्वर्गवासी पति का चेहरा उभर आया था ,जिन्हें महामारी ने असमय ही उनसे अलग कर दिया था। शायद अभी कई साल जीवित रहते !
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451