*** पेड़ : अब किसे लिखूँ अपनी अरज….!! ***
* घने आबादी के घेरे ,
तेरे कुल्हाड़ी के ज़ोर प्रहार ;
मेरे तन-मन और अंग-अंग को ,
कर गए कमजोर ।
तू है शायद…!
विकास के कुछ नशे में ,
तू है शायद…!
औद्योगिक प्रगति के कुछ कश्मकश में ।
तभी तो मेरा साथ छोड़ गए हो ,
मुझसे मेरा ही परिवार , तोड़ गए हो ।
कभी मेरे घर में (जंगल में ) ,
आग लगा देते हो ;
कभी मेरे हिस्से की जमीन भी (भू-माफियाओं का दोहन) , काट खा जाते हो ।
कभी मेरे अंग के हिस्से ,
फूल और फल तोड़ जाते हो ।
देख तेरे खुशी की मुस्कान ,
मैं सब दुःख-दर्द भूल जाता हूँ ।
तेरे खुशियों की चमक को ही ,
मैं हर ग़म की मरहम समझ जाता हूँ ।
पर…..
आज हूँ मैं तेरा ही शिकार ,
क्यों है..? तेरे कृत्य का मुझ पर प्रहार ।
जब कभी आती है तुम पर संकट कोई ,
मंदिर में घंटा बजा जाते हो ।
मस्जिद में नमाज़ ,
गुरुद्वारा में गुरू ग्रंथ पढ़ कर आ जाते हो ।
अपनी-अपनों की रक्षा में ,
चर्च जा ‘save me God , save me God ‘
कह जाते हो ।
और तुम खुद शिकारी बनकर….
अब कहते हो कि..
हवाओं में ज़हर घुल गया है ,
अब कहते हो कि….
देखो प्रकृति में भी मौसम बदल गया है ।
पर… सच कहूँ मैं …!!!
मैं या हम कभी बदले नहीं ,
तुम्ही ने हमें बिखेरा है ।
मैं या मेरा परिवार तो…!
विश्व स्वरूप का एक सेहरा है ।
आज तुम्हीं ने कुल्हाड़ी से ,
मेरे एक एक अंग को कुरेदा है ।
कहीं-कहीं जन्मों-जन्म तक साथ साथ रहेंगे ,
की बातें कह , अपने साजन-सजनी से ;
मेरे ही हृदय तल पर ,
” अपने दिल की तस्वीर ” को उकेरा है।
शायद तुम भूल गए हो….!!!
जब तुम थे निर्वस्त्र से ,
तब मेरी आंचल ही एक सहारा था ।
जब नहीं था कोई आवास तुम्हारा ,
तब भी मेरी छाया ही , तूझे सबसे प्यारा था ।
अब किसे लिखूँ मैं अपनी अर्ज़…!
अब कौन निभाएगा यहां अपना फ़र्ज़…!
अब कौन सुने मेरा फरियाद ….!!
अब कौन कहे ” तुम हो ” तो…,
ये जीवन है आबाद….!!
अब कौन कहे ” तुम हो ” तो…,
ये जीवन है आबाद….!!!
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* बी पी पटेल *
बिलासपुर ( छ . ग . )
२९ / ०८ / २०२१