**पृथ्वी तेरे नाम अनेक**
हे माँ वसुंधरा !
ह्रदय तेरा अतुल्य स्नेहिल ममत्व से भरा,
तभी कहलाती है तू धरा।
तेरे विशाल उर पर हे मही,
काल ने असंख्य कथाएं कही।
धन्य है तू माता धरित्री।
मांँ सीता थीं तेरी ही पुत्री।
तेरे कई सुपुत्रों ने हे भूमि,
तेरी अनंत छाती पर,
विश्व विजय की पताका चूमी।
पुत्रों पर तेरा प्रेम अपरिमित हे वसुधा,
सब पर एक सा बरसे न कोई दुविधा।
दसों दिशा में तेरी करुणा उद्वेलित हे उर्वि,
उत्तरी दक्षिणी हो या पश्चिमी पूर्वी।
प्राणी मात्र की तू माता हे अवनि,
पुत्र प्रेम में तू सबसे अग्रणी।
कुपुत्र हो या हो सुपुत्र हे क्षिति,
स्नेह की पराकाष्ठा ही तेरी नीति।
अमूल्य निधि को समेटे गर्भ में हे रत्न गर्भा,
लुटाती निज पुत्रों पर निज रत्नों की आभा।
हे धरती माँ तू ही जगत्माता,
तू जननी तू ही भाग्य विधाता।
———रंजना माथुर दिनांक 05/07/2017
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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