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16 Jun 2022 · 3 min read

पुस्तक समीक्षा

उड़ मन पाखी – कविता संग्रह
कवयित्री – विजया गुप्ता
सहज प्रकाशन
113- लालबाग गांधी कालोनी, मुजफ्फरनगर
प्रथम संस्करण – 2019
मुद्रक : पब्लिश प्वाइंट – मुजफ्फरनगर
मूल्य : 300 रूपये

सौम्य, सहज और सरल व्यक्तित्व की स्वामिनी आदरणीय विजया गुप्ता दीदी की पुस्तक ‘उड़ मन पाखी’ पढ़ने का सुखद अवसर मिला | 48 अविस्मरणीय कविताओं का संग्रह, जिसमें प्ररोचना के माध्यम से श्रद्धेय श्री उमाकान्त शुक्ल जी के विचारों से जुड़नें का भी सौभाग्य मिला। कुछ पुस्तके इतनी अच्छी होती हैं कि पढ़ते-पढ़ते एक अदभुत स्नेह-भाव हृदय-तल को सहला जाता है और मन स्निग्धता से भरा मिलता है। इस पुस्तक को पढ़ते-पढ़ते लगा जैसे साहित्याकाश का एक उज्जवल तारा मेरे अन्तर्मन को प्रकाशित कर गया।
प्रथम रचना “माँ भारती” ..
श्वेतवसन धारिणी
कलिमल तिमिर हारिणी…
ज्ञान को विस्तार दो |
पढ़कर मन प्रसन्न हो गया।
अभिव्यक्ति निर्बाध हो
शब्द प्रवाह अबाध हो

जैसे भाव समेटे रचना संपूर्णता के साथ माँ भारती से जोड़ती गई।

इसी प्रकार कविता ‘प्रेम’ की पहली पक्ति पढ़कर ही मन प्रकृति की कोमलता में खो गया…
“मखमली दूब पर पड़ी ओस सी
फूलों से लदी जल सी”

अनुपम शब्द गठन..ज्यों-ज्यों कविता पढ़ते गए …मन पुलकित होता गया। कवयित्री का भोला मन हर कविता में एक नये भाव के साथ सुसज्जित मिला | इतना भावपूर्ण लेखन पढ़कर मन मुदित हो गया।

“नभ के नयनों से बूंद
गिरी” (मधुर-मिलन)
या
“मन बुनकर बुनने लगा ताने –बाने” (नेह-निमंत्रण)
कलात्मक बिंब सहेजे पक्तियाँ भला किसे नहीं मोह लेंगी | अद्भुत भाव सॅंजोए ये रचनाएँ सहज ही मनसपटल पर अंकित हो जाती हैं |
इस संग्रह में जहां नारी-विमर्श के स्वर हैं तो वहीं इंसानियत को भी विभिन्न रूपों से शब्दों में बांधने का प्रयास किया गया है | कविताओं का मनोरम गुलदस्ता स्मृतिपरक, प्रकृतिपरक तथा जीवन के विभिन्न रूपों से जुड़ी रचनाओं के पुष्पों से महक उठा है | इन कविताओं के माध्यम से कवयित्री पाठक को मानव-जीवन से बाॅंधे रखने में सफल रही हैं | “सुन रे कागा” हो या “एक कोना वतन का” हर कविता में एक संदेश छुपा है। निःसंदेह यह कृति कवयित्री की साहित्यिक परिपक्वता को एक नया आयाम दे पाने में सफल हुई है | कविता ‘साधना’ हो या ‘दंभ’, ‘चिर सनातन हो’ या ‘हे राम!’ मात्र मनभावन ही नहीं हैं बल्कि जीवन को प्रेरणा से भी भरती हैं। जैसे ‘ऐसे थे ताऊ जी’ वाली कविता को ही देखिए, उस समय की दिनचर्या को कवयित्री ने कितनी मधुरता से व्यक्त कर दिया है। पढ़कर लगा जैसे उसी युग में पहुॅंच गये। इसी प्रकार
‘आल्हा ऊदल गोरा बादल’
‘कुॅंवर दे, फूलन दे’..
‘द्रौपदी का चीरहरण’
जैसी रचनाओं में अतीत की प्रेरणादाई स्मृतियों को कितने सहज भाव से अभिव्यक्त कर दिया गया है। एक अन्य कविता में कवयित्री के प्रश्न पर “बताओ मुझे कब तक चलता रहेगा यह सिलसिला यूं ही” पाठक सोचने पर मजबूर हो जाता है। कुछ रचनाएं यर्थाथ पर चिंतन करने को विवश करती हैं। जैसे ‘धरतीपुत्र’ में पात्र जब “पत्नी की बाली बनवाऊंगा” सोचता है तो अनायास ही उसके सपने स्वयं से जुड़े प्रतीत होने लगते हैं।

पुस्तक का शीर्षक तथा मुख पृष्ठ भी सार्थकता से रचा गया है।

इसके साथ ही पुस्तक में इनकी पहली पुस्तक पर पाठकों की जो प्रतिक्रियाएं हैं वो भी लाजवाब हैं | ये प्रतिक्रियाएं एक तरफ कवयित्री की लोकप्रियता का बोध कराती हैं वहीं दूसरी तरफ नैसर्गिक सामाजिकता समेटे रचनाओं से परिचय भी कराती हैं |
कविताओं की दुनिया बहुत अनोखी होती है | इतनी मोहक कविताएं रच जाती हैं कि पाठक पढ़कर चकित रह जाता है।

अंत में मैं यही कहूॅंगी कि 104 पृष्ठों से सजी इस उत्कृष्ट पुस्तक में जहाॅं माधुर्यता का भाव सहेजे अलंकार युक्त रचनाएं हैं, वहीं समाज के कुरूप चेहरे पर भी कटाक्ष किया गया है, जिनमें समाज को झकझोरने की पूरी ताक़त है।

स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ, उत्तर प्रदेश

Language: Hindi
2 Likes · 843 Views
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