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7 Nov 2022 · 4 min read

*पुस्तक समीक्षा*

पुस्तक समीक्षा
पुस्तक का नाम : गगन ना देगा साथ (काव्य संग्रह )
कवि का नाम : रामलाल अंजाना
प्रकाशन का वर्ष : 2020 _प्रकाशक :_ चंद्र प्रकाशन, मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)
वितरक : अ. भा. साहित्य कला मंच, मुरादाबाद दूरभाष 0591 413111
मूल्य: ₹75 सजिल्द
————————————-
समीक्षक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
___________________________
वैराग्य के कवि रामलाल अंजाना

भूमिका में कवि ने लिखा है :- “मुझे तो गॉंव के गलियारों से लेकर महानगर की चिकनी-सपाट-बेलौस सड़कों और चमकती-दमकती इसकी गलियों तक घोर अव्यवस्था और टूटन ही दिखाई देती है ”
लगभग यही वह स्वर है ,जो काव्य संग्रह में मुखरित हो रहा है । गांव से लेकर महानगरों तक जीवन-शैली में जो आपाधापी सर्वत्र देखने में आ रही है, वही इन कविताओं में मुखर हुई है ।
दोहों से कवि को विशेष लगाव है । पुस्तक का आधा भाग दोहों से आच्छादित है । आधे में गीत और गजल स्थान लिए हुए हैं। कवि की दृष्टि वैराग्य मूलक है। शरीर और संसार की नश्वरता को भली-भांति उसने समझा हुआ है, इसीलिए व्यर्थ के पाखंड,आडंबर तथा अभिमान की मिथ्याचारिता को बताना उसका प्रमुख ध्येय भी है। कुछ दोहे देखिए,
प्रथम दोहा इस प्रकार है :-
ऍंठे ऍंठे दिन गया, और नींद में रात
कही सुनी कोई नहीं, कभी प्यार की बात
कुछ अन्य दोहे विशेष रुप से ध्यान देने योग्य हैं :-
गये बड़े छोटे गए, गए सभी विद्वान
साथ नहीं ले जा सके, रत्ती भर सामान
(दोहा संख्या 9)
यौवन उड़ता जा रहा, ऊंची भरे उड़ान
वहीं रुकेगा जिस जगह ठहरा है शमशान
( दोहा संख्या 15 )
सत्य कभी मरता नहीं, मारो सौ-सौ बार
झूठ न जिंदा रह सके, लाख करो उपचार
( दोहा संख्या 49)
नए-नए बनते रहे आलीशान मकान
मिटा दिए पर वक्त ने, उनके सभी निशान
(दोहा संख्या 147)
कुछ दुमदार दोहे भी हैं, जिनसे दोहों का सौंदर्य तथा प्रस्तुतिकरण का आकर्षण बहुत बढ़ जाता है । एक दोहा देखिए :-
खटमल मच्छर मक्खियॉं, फैलाते हैं रोग
इन्हें मारना पुण्य है, समझो जग के लोग
रोग यह सभी मिटाओ
अगर तुम जीना चाहो
दोहा संख्या (293)
इस तरह हम देखते हैं कि ‘दुमदार दोहों’ के साथ-साथ जो अन्य दोहे हैं, उनमें भी शिल्प पर पर्याप्त बल दिया गया है । मृत्यु को अवश्यंभावी मानकर व्यक्ति को सचेत किया गया है । यह बताया गया है कि युवावस्था केवल चार दिनों की चमक-दमक है तथा सत्य के प्रति इस बात का जयघोष किया गया है कि ‘सत्यमेव जयते’ ही वास्तविकता है । जो सांसारिक वस्तुएं हम बड़ी-बड़ी कोठियों आदि के द्वारा एकत्र करते हैं, वह सभी क्षणभंगुर हैं,उपरोक्त दोहों में यह बात दर्शाई गई है । कवि की सात्विक दृष्टि इन दोहों में मुखरित हो रही है । इनमें उपदेश है और व्यक्ति के लिए जीवन का कल्याण करने वाली सीख निहित है।
अच्छी बात यह है कि पुस्तक कथ्य के साथ-साथ शिल्प में भी सुगढ़ता लिए हुए हैं ,अतः कवि की दोहा-रचना के शिल्प में अच्छी पकड़ प्रकट हो रही है।
गीत और गजल के क्षेत्र में भी कवि ने समीक्ष्य-संग्रह में अच्छी छाप छोड़ी है। ‘चार दिन की चॉंदनी’ शीर्षक से गजल का एक शेर बहुत अच्छा बन गया है । देखिए:-
बादशाहों का यहॉं जाते समय झाड़ा लिया
थे बहुत मजबूर खाली हाथ दिखलाने लगे
(प्रष्ठ 72)
उपरोक्त शेर में न केवल शरीर की नश्वरता का बोध कराया गया है अपितु यह भी बताया गया है कि संसार में धन-संपत्ति जोड़ना अपने आप में एक निरर्थक कृत्य है, क्योंकि अंत में जोड़ा हुआ सभी धन यहीं पर रह जाना है।
वैराग्य भाव को ही अभिव्यक्ति देता एक गीत ‘कोई बांध न सका समय को’ अत्यंत महत्वपूर्ण है । इसमें मृत्यु की बेला में जो वैराग्य व्यक्ति के मानस में उत्पन्न होता है ,उसे मृतक के माध्यम से कवि ने व्यक्त किया है:-
जाने दो मैं घर जाऊंगा
यह घर खाली कर जाऊंगा
(प्रष्ठ 57)
संसार में जिस प्रकार से नफरत का जहर दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है, उसके ऊपर कवि ने सही कटाक्ष किया है:-
यहॉं नफरतों के दिए जल रहे हैं
बसा अब दिलों में जहर ही जहर है
(प्रष्ठ 61)
एक गजल में छुआछूत को मिटाने तथा जाति भेद को समाप्त करते हुए ईश्वरीय भावना को जागृत करने पर बल दिया गया है । शीर्षक है- दिल ही परमेश्वर के घर हैं । इस गजल का एक शेर बहुत प्रभावी बन गया है देखिए :-
यह धर्म जाति तो आरी है, यह सब के लिए कटारी है
बदबू फैलाती छुआछूत, यह बहुत बुरी बीमारी है
(पृष्ठ 55)
इस तरह हम पाते हैं कि ‘गगन ना देगा साथ’ एक उच्च कोटि की ऐसी रचना है जो ऊंचे दर्जे के विचारों के साथ हमारे सामने अपनी सुगंध बिखेर रही है। श्री रामलाल अंजाना (जन्म 20 – 6 – 1939 — मृत्यु 27 जनवरी 2017) आजीविका की दृष्टि से कार्यालय अधीक्षक, जिला विद्यालय निरीक्षक मुरादाबाद के पद से सेवानिवृत्त हुए।
—————————————-
नोट : डॉ. मनोज रस्तोगी द्वारा साहित्यिक मुरादाबाद व्हाट्सएप समूह पर चर्चा के माध्यम से कविवर श्री रामलाल अंजाना की पुस्तक ‘गगन ना देगा साथ’ उपलब्ध कराई गई, जिसके कारण यह समीक्षा लिखी जा सकी। अतः आपका हृदय से धन्यवाद।

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