*** ” पुकार मेरे मन की……. एक औरत ” ***
* ओ मेरे सांवरे सजन ,
सुन ले एक विरहणी के मन।
तरस रही है अंतर्मन ,
पाने को तेरे एक दर्शन ;
निर्मल हो जायेगा , ये पुलकित चितवन।
ओ सूरज ,ओ सूरज ;
मैं हूँ तेरी रजनी-नीरज।
आस लगाए बैठी हूँ धीरज।।
विलाप है मेरे मन की ,
संताप है मेरे तन की।
मुझ पर छाया है ” तम ” का घेरा ,
करती नहीं मैं कभी रैना-बसेरा।
मेरे मन की पुकार सुन ले ,
मेरे अरमान की गुहार गुन ले।
मैं तेरी पनाहों की प्यासी ;
विरह वेदना में बैठी , बेचैन देवदासी।
जोहत रही अंतर्मन , चौखट पर ;
तेरे आने की आहट।
अंतर्-द्वंद में हो रही है ,
एक अजीब सी घबराहट।
करती है मन, रुदन और क्रंदन ,
आज सताने लगी है ये बैरी-पागल नैन।
पल-पल झपकती ये ” पलक ” , न जाने क्यों रुठ गई है ;
और कसक बनकर बैठी विरह-बेचैन ।
न जाने क्यों ‘ दस्तक ‘ देता ,
चूभन सा ‘ कसक ‘ मेरे हृदय आंगन में ;
अविरल बहती ये मस्त-पवन।
हो गई है विरहणी-सी , चंचल मन ;
दुःख-संताप में , हृदय करने लगी है सागर मंथन।
काश….! वह अमृत न हो कर ,
” गरल ” हो जाये ।
एक घूंट पी लूं ,
शायद ….! यमराज जी सौहर बन जाये।
** विनती है , विरागनी की ;
पुकार है चिरागनी की।
आज मुझे अपना ” दर्शन ” दे जा ,
रूप-यौवन में निखर बिखेर जा।
” मधुर-मन ” और ” कोमल-निर्मल-उर ” दे जा।।
फिर चाहे तू , अस्ताचल में छुप जाना ;
मिले राह में ” क्षीरसागर ” तो भले ही , तू डूब जाना।
एक ” प्रसाद ” मुझे भेंट कर जाना ,
” सूत ” ‘ रोशन ‘ सा दे जाना ।
” पवन ” सा उसे ‘ चंचल ‘ कर जाना।।
” सूता ” ‘ किरण ‘ सी ले आना ,
” नीर ” सा उसे ‘ धवल ‘ कर जाना।
” रजनी-नीशा ” सी उसे शीतल कर जाना।
ओ सूरज, ओ सूरज ;
मैं हूँ तेरी रजनी-नीरज ।
आस लगाए बैठी हूँ धीरज ,
आस लगाए बैठी हूँ धीरज।।
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* बी पी पटेल *
बिलासपुर ( छ. ग . )