पीले पात
पात पीले हो गए हम
पीत पत्तों की भला
कीमत कहाँ
बस किताबों के लिए
अस्तित्व अपना
किस लिए यूँ काँपते
उड़ते फिरें
क्यों नयन में साँस में
अटके घिरें
एक दिन सूखेंगे
और पतझड़ बनेंगे
पाँव के नीचे कुचल
पिसते फिरेंगे
पर शिकायत
वृक्ष से होगी न क्यों
कल तलक
हमसे ही उसकी
शान थी
आज जब हम
घिर गए जर्जर हुए
उसकी हरइक डाल-डाल
हमको हवा देने लगी
कब गिरें हम टूटकर
हर एक पत्थर कह रहा
और हम
लाचार पत्ते
बस हवाओं से डरें
देखते हैं
ये हवाएँ क्या करें