पीते हैं आओ चलें , चलकर कप-भर चाय (कुंडलिया)
पीते हैं आओ चलें , चलकर कप-भर चाय (कुंडलिया)
—————————————————-
पीते हैं आओ चलें , चलकर कप-भर चाय
मस्ती लाने का कहाँ , अच्छा और उपाय
अच्छा और उपाय ,अक्ल पीकर खुल जाती
चलता तेज दिमाग ,नई ऋतु भीतर छाती
कहते रवि कविराय , न जाने कैसे जीते
अचरज है कुछ लोग ,कभी भी चाय न पीते
—————————————————–
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451