पितृ हमारे अदृश्य शुभचिंतक..
– ‘पितृ हमारे अदृश्य शुभचिंतक’
विद्या- कविता
सपनों में अक्सर मैंने
पितरों को आते देखा है
पूछा मैंने किसी से
इसका अर्थ क्या होता है
सब कहते है !
पितृ तुम्हारे अदृश्य शुभचिंतक।
नई राह तुमको दिखाते हैं
क्या उलझन तुम पर आएगी
समय से पहले समझाते हैं
उसका तुम निवारण करो
उस समस्या से तुम बाहर निकालो
इसलिए पितृ तुम्हारे
तुमको दर्शन देते हैं
पितृ तुम्हारे अदृश्य शुभचिंतक
रह रह तुमको बतलाते हैं।
ध्यान से तुम सोचो
कितनी फिक्र तुम्हारी उनको रहती
ऐसे बंधन तुमसे बंधे हैं
जो तुमने ना सोचे होंगे कभी
पितृ तुम्हारे अदृश्य शुभचिंतक ।
बस इतनी सी है उनकी चाहत
कर्म हमारे सत्य हो
देख मन उनका हो प्रफुल्लित
दुख की ना कोई परछाई आए
उससे पहले ही
वह तुमको आभास कराए
पितृ हमारे अदृश्य शुभचिंतक।
हरमिंदर कौर
अमरोहा (यूपी)