पितृ देवो भव
पिता शब्द पर गर्व है ,पालन पोषण हार।
एक नहीं समझें कभी, नाम अर्थ परिवार ।
पिता स्वयं भगवान ही,आप रचा संसार ।
देखभाल जीवन करे,कंधे लेकर भार।
दो स्तंभो पर ही टिका ,सुंदर सा परिवार ।
मात पिता दोनों यहाँ, हैं मजबूत अधार।।
पिता प्रेम का देवता, माता देवी रूप ।
संतानों को चाहते ,बनें जगत के भूप।।
पालन पोषण के लिए, करता पिता उपाय।
शिक्षण अच्छा चाहता ,योग्य पुत्र बन जाय।।
ब्रह्मा सम रच भाग्य को,पिता विष्णु भगवान ।
शिव समान संकट हरें,सुख पावे संतान ।।
संतानों हित कष्ट सब,करता वह स्वीकार ।
पिता नाम कर्तव्य का, नहीं मानता हार।।
बरगद तुलना कवि कहें, पाते छाया जीव।
पिता सदा परिवार हित,भरता गहरी नीव ।।
पितृ देवो भव मंत्र जप, कौन जगत के काम ।
वृद्ध पिता आश्रम रहे ,पुत्र धर्म बदनाम ।।
राजेश कौरव सुमित्र