पिता
दिन-रात एक करके पिता करता कमाई।
बच्चों के लिए ख़ुद की भी तकलीफ़ भुलाई।
करता है त्याग और तपस्या वो हर क़दम-
लेकिन पिता ने मान कहांँ मांँओं सी पाई।
कपड़े खिलौने स्कूल किताबें है जुटाता।
बच्चों की हर जरूरतों को पूरी कराता।
करता पिता भी लाड़ है माता के बराबर-
हर फर्ज़ निभाता है मगर कह नहीं पाता।
पढ़ लिख के कुछ अच्छा करे हमारी भी संतान।
जग में करे हासिल सदा ही मान औ सम्मान।
मुझसे भी अधिक नाम योग्यता हो बच्चों की-
उसके ही नाम से बने पिता की भी पहचान।
सहता है धूप-छांँव मन में लक्ष्य को पाले।
ख़ुद जल के करे बच्चों के जीवन में उजाले।
परिवार घर की नींव है दीवार है पिता-
हर आंँधियों से दुःख की बचाए व संभाले।
रिपुदमन झा ‘पिनाकी’
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक