पिता
एक सूत्र में बांध सभी को,जो घर में रख पाता है।
सब के मुख पर देख हँसी को,जो खुद कभी मुस्कुराता है।।
अपने बच्चों की हर ख्वाहिश,जो बोलने से पहले पूरी कर पाता है।
एक पिता अपने सभी बच्चों की हर जरूरत पूरी कर पाता है।।
वो पिता ही है जो हर बच्चे की झोली खुशियों से भर पाता है।
रातों जागकर बच्चों की खातिर, जो सुंदर सुंदर स्वप्न सजाता है।।
देख मुसीबत बच्चों पर अपने कमज़ोर पिता भी शेर बन जाता है।
बच्चों तक कोई दुःख ना पहुंचे अकेला जो दस दस से भिड़ जाता है।।
वो पिता ही है जिसका कोई कपड़ा कभी भी पुराना नहीं हो पाता है।
और अपने बच्चों को हर वर्ष जो नये नये ब्रांडेड कपड़े दिलवाता है।।
बच्चों को जो उनकी इच्छानुसार नोकरी या व्यापार करवाता है।
आज भी वो पिता अपनी आदत से मजबूर बच्चों की खातिर पैसे बचाता है।।
खुद पैदल मंडी जाकर जो बच्चों की पसंद की चुन चुन कर वस्तुएं लाता है।
मां के द्वारा बनाए स्वादिष्ट खाने का सारा श्रेय भी जो माता को दिलवाता है।।
वो जो पुत्रवधु की खातिर अपने खुद के बेटे से भी गुस्सा हो जाता है।
बेटियों का बनता आदर्श पिता पर बेटे के दिल में जगह कम ही बना पाता है।।
बच्चों को अपना सबकुछ देकर भी सदैव जो और भी देना चाहता है।
खुली आंखों से जो देखे सपने वही जगत में बुरा या अच्छा पिता कहलाता है।।
विजय कुमार अग्रवाल
विजय बिजनौरी