पिता
चंद शब्दों में पिता के व्यक्तित्व को बयान कर दूँ, ऐसी ना मेरी काबिलीयत है तो ना उनकी की शख्सियत है जो यूँ ही बयान हो पाए।
मेरे द्वारा लिखी गई पिता के लिए यह कविता –
अभिमान हो आप हमारा, घर का स्वाभिमान हो।
हमारी खुशी से परिपूर्ण सुबह व शाम हो।।
पैरों पर खड़ा होना सिखाया, वो सहारा हो आप।
हमारी ख्वाहिशों का किनारा हो आप ।।
खुशी आपसे है तो घर का अनुशासन भी आप हो ।
घर की एकता का आश्वासन भी आप हो ।।
कंधे पर उठाए घर का दायित्व, वो ताकत हो आप ।
चलता जिससे यह घर, वो शान और शौकत हो आप ।।
गम को दिल में बसाए, चेहरे की मुस्कान है ।
वो मेरे पापा ही तो है जिनसे जग में हमारी पहचान है ।
जिनसे जग में हमारी पहचान है ।