पिता जीवन में ऐसा ही होता है।
हर विपत्ति को चुपचाप ही सहता है।
ये पिता है पिता जीवन में ऐसा ही होता है।।
स्वयं को भूलकर,,,
सबका ही ख्याल रखता है।
सबकी ही जिंदगी को,,,
वह बस खुशियों से भरता है।।
हमारा जीवन हो अच्छा,,,
वह अथक प्रयास करता है।
परिवार को बिना दुःख पहुचाएं,,,
वह अनवरत परिश्रम करता है।।
भोर पहर उठता है,,,
अपनी दैनिक दिनचर्या में लग जाता है।।
शाम पहर आता है,,,
अपने पग को चुपके चुपके से सहलाता है।।
किसी को कष्ट ना हो कुछ ना कहता है।
मन में अंदर ही अंदर अंतरद्वंद लड़ता है।।
बागवान बनकर वह हमारे बचपन रूपी पौधे को,,,
अपने लहू से जीवन पर्यन्त सींचता है।
कली स्वरूप कोमल बच्चों के जीवन को,,,
अपने अथक परिश्रम की गर्मी से फूल बनाता है।।
सृष्टि में जीवन के इसी कुचक्र में,,,
फंस कर वह स्वयं का जीवन ना जी पाता है।
अंत समय में अक्सर ही,,,
उसको तन्हा जीवन यापन करना पड़ जाता है।।
स्वयं की निर्मित चीजों पर,,,
उसका स्वामित्व ना रह जाता है।
कलयुग में कभी कभी तो,,,
वह वृद्धा आश्रम भी चला जाता है।।
अपने बच्चों का वह जीवन निर्माता होता है।
मनुष्य केवल उसे नाम मात्र का ईश्वर का दर्जा देता है।।
चलो आज हम सब मिलकर ये संकल्प लेते है।
अपने पिता के जीवन को खुशियों से भर देते है।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ