पिता की तरह
पिता की तरह
उम्मीदे पिता की तरह सामने है मेरे।
कुछ नहीं कहते पर रहते हमेशा साथ पिता।।
न रोते हैं दुख में,न हंसते हैं खुशी में।
कुछ नही कहते बस सदा रहते समान हैं।।
कष्ट होते पिता के समान हैं जो।
साथ होते हुए भी दिखते नही साथ है।।
बाँध से होते पिता जीवन मे ढाल बन।
जीवन मे कष्ट तो भी ढाल से अड़े होते साथ है।।
पिता होते जागृत से निंद्रा में भी।
कष्टो की कालिमा में भी परछाई से साथ मे।।
मन में ठहरे होते जज्बात से पिता होते साथ मे।
लिपट मन के भाव से पिता के सानिध्य में।।
सोती रही बांहों में निश्चिंत सी रात में पिता जो साथ है।
पिता तो स्वप्न से होते क्योंकि निंद्रा में भी साथ है।।
अजनबी सी उम्मीद होते पिता संतान के साथ है।
घने दुःख के बीच प्रकाश पिता अगर साथ है।।
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद