पिता का महत्व
पिता अपनी संतान को ,
माता से कम प्यार नहीं करता ।
मगर दर्शाता नहीं।
माता घर में होती है ,
दिन भर संतान की देखभाल करती है,
पिता दिन भर घर के बाहर ,
संतान के लिए ही दौड़ धूप करता है ।
मगर जतलाता नहीं।
माता का दूध स्नेह रूप में ,
संतान को पोषित करता है ।
और पिता के परिश्रम का पसीना,
संतानों के जीवन निर्माण करता है ।
माता थोड़ी जायदा भावुक होती है ,
पिता भी भावुक होता है ,
मगर संतान को मजबूत बनाने हेतु ,
कठोर बने रहना क्या जरूरी नहीं।
पिता अपनी पत्नी हेतु दिलवाए नई साड़ियां,
और संतानों के लिए भी सारी उनकी ,
जरूरतें पूरी करे ।
परंतु अपने लिए सिलवाता
एक कमीज भी नहीं,
माता के प्रेम और त्याग के समक्ष ,
पिता का भी स्नेह और त्याग कोई कम तो नहीं !
मगर उसके योगदान और महत्व का,
गुणगान कभी होता नहीं।
क्या जग में मां ही मात्र महान है ,
पिता की महानता का कोई मूल्य नहीं ।
पिता सूर्य,पिता आकाश , और पिता ब्रह्मा,
विष्णु एवं महेश ।
और पिता है गृह स्वामी भी ।
पिता के बिना घर घर नहीं ,
और संसार भी नहीं।
पिता माता का सुहाग ,
संतान की ताकत ,उनका आत्म विश्वास,
गौरव है ।
सच तो यह है की पिता के बिना ,
परिवार का कोई वजूद नहीं ।