पिछले 40 वर्षों से उपेक्षित ही रहे अभिलाष
जी हाँ, मैं ज़िक्र कर रहा हूँ—गीतकार और पटकथा-संवाद लेखक अभिलाष का। जो कि पिछले 40 वर्षों से निरन्तर फ़िल्मी दुनिया में उपेक्षित ही रहे। योगेश गौड़ की तरह अभिलाष भी पुरानी पीढ़ी के सक्षम गीतकार थे। पता नहीं ऐसी कौन-सी राजनीति है कि एक तबक़े को ही और कुछ ख़ास लोगों को ही आगे बढ़ाना है। बाक़ी प्रतिभा सम्पन्न व्यक्तित्वों को दबा दो। उभरने न दो। उन्हें मुख्यधारा का होते हुए भी इग्नोर करो। पोस्टर और कैसेट्स, सीडी कवर में जगह न दो। उन पर फ़िल्मी पत्र-पत्रिकाओं में आलेख न छापो। दुःखद है। अभी हाल ही में गीतकार योगेश का देहान्त भी बेहद गुमनामी के दौर में हुआ। जबकि योगेश जी और अभिलाष जी किसी भी प्रकार से गुलज़ार साहब से कम नहीं थे। बल्कि इन दोनों गीतकारों की ऊंचाई का स्तर बड़े-बड़े शाइर भी न छू सके।
दिल्ली में एक बार उनकी मुलाक़ात साहिर साहब से हुई थी। साहिर के गीतों से प्रभावित होकर वे साहिर साहब को अपना गुरू भी मानते थे। साहिर लुधियानवी जी को जब अभिलाष जी ने अपनी कुछ नज्में व ग़ज़लें सुनाईं। तो साहिर साहब ने मंत्रमुग्ध होकर कहा, ‘आहा…. हा…. ऐसा लग रहा है, जैसे मैं अपनी ही ग़ज़लें व नज़्में सुन रहा हूं। बहुत खूब अभिलाष जी वाह! वाह! क्या कहने!’
अभिलाष का असली नाम ओमप्रकाश था और उपनाम ‘अजीज’, लेकिन जब फ़िल्मों में क़दम रखा तो अपना नाम अभिलाष रख लिया। अभिलाष ने लगभग 40 साल तक हिंदी सिनेमा में कई यादगार गीत रचे। “इतनी शक्ति हमें देना दाता” (फ़िल्म: अंकुश) बेहद चर्चित हुआ। इसके अलावा अभिलाष के लिखे अन्य कुछ गीत—”सांझ भई घर आजा….” (लता मंगेशकर), “आज की रात न जा रे….” (लता मंगेशकर; ग़ज़ल: अभिलाष; संगीत: के. महावीर), “वो जो खत मुहब्बत में….” (ऊषा मंगेशकर), “तुम्हारी याद के सागर में….” (ऊषा मंगेशकर), “संसार है एक नदिया….” (मुकेश माथुर), “तेरे बिन सूना मेरे मन का मंदिर….” (ग्रेट येसुदास) आदि-आदि भी बेहद लोकप्रिय रहे। गीतकार के अतिरिक्त अभिलाष जी ने अनेक फ़िल्मों के लिए बतौर पटकथा, संवाद लेखक भी कार्य किया था।
अभिलाष का जन्म दिल्ली में एक साधन सम्पन्न परिवार में 13 मार्च 1946 ई. को दिल्ली में हुआ था। उनके पिता अच्छे व्यवसायी थे। पिता चाहते थे कि उनका बेटा उनके व्यवसाय को अपनाये। किन्तु यह मुमकिन नहीं हो पाया। स्कूल के दिनों से ही अभिलाष को काव्य में रुचि थी। महज ११-१२ वर्ष की अवस्था में उन्होंने छंदमुक्त कविताएं लिखनी शुरू कर दी। इसके बाद वह छन्द की दुनिया में आये तो ग़ज़ब हो गया। वह लाजवाब गीत, ग़ज़ल व कहानियाँ भी कहने लगे। जो कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं। जब वो दसवीं कक्षा में पहुंचे तो अनेक काव्य मंचों पर अपनी काव्यात्मक प्रस्तुतियाँ देने लगे।
उम्दा लेखन हेतु अनेक बार अभिलाष को अनेक सम्मानों द्वारा सम्मानित भी किया गया। जैसे—अभिनव शब्दशिल्पी अवॉर्ड, विक्रम उत्सव सम्मान, हिंदी सेवा सम्मान, सुर-आराधना अवॉर्ड, मातोश्री अवॉर्ड, सिने गोवर्स अवॉर्ड, फिल्म गोवर्स अवॉर्ड, इत्यादि-इत्यादि से समय-समय पर सम्मानित किया गया। इसके बावज़ूद उन्हें फ़िल्मी दुनिया ने उपेक्षित ही रखा। वह अपने गुरू साहिर लुध्यानवी की तरह प्रसिद्धि न पा सके। जिसकी कहीं न कहीं पीड़ा उनके मन को और उनकी रचनाओं को पसन्द करने वाले लाखों प्रशंसकों को आजीवन कष्ट देती रही।
ख़ैर तमाम दुःख व तकलीफ़ों और उपेक्षाओं ने भी गीतकार और लेखक अभिलाष के भीतर लेखन का जज़्बा कभी कम नहीं होने दिया। गत रविवार 27 सिप्तम्बर 2020 ई. को मुंबई में उन्होंने सदा-सदा के लिए आँखें मूंद लीं। अभिलाष 74 वर्ष के थे।