पिंजरे में कैद पँछी
#पिंजरे_में_कैद_पँछी
(1)
पिंजरे में कैद था एक पँछी
?जिसकी व्यथा मैं सुनाता हूँ
??भूल गया था उड़ना वो तो
???उसकी गाथा मैं सुनाता हूँ ।।
(2)
पिंजरे से आकर बाहर
?आसमान को छूना चाहता हूँ
??स्वतंत्र रूप से पंख फैलाकर
???मैं भी उड़ना आज चाहता हूँ ।।
(3)
कैद में रखते हो हमे
?क्या मैं शोभा घर का बढ़ाता हूँ
??खुली वादियों में जीने दो हमे
???उस पिंजरे में जाते डर जाता हूँ ।।
(4)
बेजुबां साँ हूँ मैं एक परिंदा
?चु-चु-कर बात बताता हूँ
??पिंजरे में कैद होकर मैं
???दुख से भरे दिन-रात बिताता हूँ ।।
(5)
सुबह ―सुबह खुले आसमाँ
?में मैं गीत बड़ा मधुर ही गाता हूँ
??हे मानव ना कर पिंजरे में कैद
???रहकर उसमे जीते जी मर जाता हूँ ।।
(6)
फल फूल पत्ते कीट पतंगा
?और खुली समर खाता हूं
??इन खुली वादियों से रहकर ही
???मैं प्रेम का मधुर धुन गुनगुना पाता हूं ।।
(7)
खुले आसमाँ में पर (पँख)
?फैलाकर उड़ना मैं तो चाहता हूँ
??ये मानव पर कुतर देते है मेरे ,
???चाह–कर फिर भी उड़ नही पाता हूँ ।।
(8)
हूं मैं ना समझ थोड़ा तभी
?शिकारी के जाल में फस जाता हूँ
??हे मानव समझ मेरी व्यथा जरा
???मैं कैद में रहकर हँस भी नही पाता हूँ ।।
(9)
हे मानव खोल दो ये पिंजरा
?उड़ा दो हमे उस खुले आसमाँ पर
??जीने दो हमे भी खुलकर
???आजादी से सांस लेना जीना चाहता हूँ ।।
(10)
छोटे– मोटे सपने तो रोज मैं
?नए –नए सजाते बुनते देखते जाता हूँ
??लेकिन उस पिंजरे में कैद रहकर मैं
बड़े दर्द तकलीफ से भरे दिन-रात मैं बिताता हूँ ।।
(11)
हे मानव तुम भी थोड़ी मेरी व्यथा
?पीड़ा को समझो मैं बेजुबां हूँ पर
??सुबह सुबह चु-चु कर तुम्हे उठाता हूँ
???मैं एक परिंदा हूँ जो गीत ही गुनगुनाता हूँ ।।
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©® प्रेमयाद कुमार नवीन
जिला – महासमुन्द (छःग)