पारिवारिक खुशियों का जीवंत उदाहरण बना लॉक डाउन
किसी को भी कानों कान पता न चला कि ये लॉकडाउन इतना लंबा चलने वाला है । बस इतना ही पता था कि 22 मार्च को जनता कर्फ्यू ही है । इसके बाद माहौल सामान्य स्थिति में आ जायेगा । चूंकि जनता कर्फ्यू रविवार को लगा था जिसके परिणामस्वरूप पास के शहरों में पढ़ने या नौकरी पेशा वाले शनिवार को ही घर आ गए थे । परंतु उन्हें क्या पता था कि ये लॉक डाउन फिर 21 दिन का हो जाएगा ।
मेरे लिए तो ये लॉकडाउन बहुत ही यादगार और प्रभावी रहा । पहली बार मैं अपने परिवार के साथ आनंद पूर्वक समय व्यतीत कर रहा हूँ । घर के छोटे मोटे काम मे सभी सदस्य मिलकर हाथ बटा रहे है । जो एक अलग ही तरह की खुशी प्रदान करता है । शाम ढलते ही सभी के साथ भोजन करना तो मानो जिसमे अलग ही मधुरता, ममत्व तथा विशिष्ट लजीज स्वाद का तड़का अपने आप ही मिश्रित हो जाता है । बातों बातों में पता ही नही चलता कब हम तीन चपाती खाने वाले एक चपाती और खा जाते है ।
दूरदर्शन द्वारा धार्मिक धारावाहिक “रामायण” और “महाभारत” के प्रसारण ने हमारे परिवार को बहुत ही प्रभावित किया है । सभी सदस्य शुद्ध हिंदी जबान बोलने लगे, हम बड़ो का आदर करने में अपनी प्राथमिकता देने लगे है, हर रिश्ते जैसे माता, पिता, भ्राता, इत्यादि के पश्चात “श्री” लगा रहे है । भले ही हम इसे व्यंग्य के तौर पर ही क्यों न कर रहे परंतु इस लॉक डाउन ने हमे परिवार के साथ सामान्य स्थिति में भी खुश कैसे रहना है वो कला सिखा दी है ।
दूसरी ओर मैं ये भी अनुभव कर रहा हूँ कि, आजकल के युवा अपना टाइम पास और क्रिएटिविटी दिखाने हेतु टिकटोक, हेलो, लाइक इत्यादि अनुप्रयोगों (ऍप्स) में अपने दोस्तों संग वीडियोस बनाते थे । परंतु लॉक डाउन के पश्चात युवा अपने परिवार के सदस्यों के साथ टिकटोक वीडियोस बनाकर साझा कर रहे है जो आज की तारीख में नम्बर एक पर इस तरह की वीडियो ट्रेंडिंग कर रही है ।
अंततोगत्वा अब परिवार ही दोस्तो से भरा एक बड़ा समूह बन गया है । सभी भाई बहन पास बैठकर एक दूसरे से अपनी बातें साझा करते है, हँसी, मजाक करते है । जिससे सभी के चेहरों पर एक स्थायी मुस्कुराहट की छवि देखने को मिलती है । जो पारिवारिक खुशी का जीवंत उदाहरण है ।
लॉक डाउन के पश्चात मानो ऐसा लग रहा है कि –
अब सादगी है, सहजता है, बंदगी है ।
जिंदगी के तमाम दौड़ धूप छोड़कर
परिवार के साथ समय निकालने पर ज्ञात हुआ ।
यही तो सही मायनों में असली जिंदगी है ।
© गोविन्द उईके