पारा बढ़ता जा रहा, गर्मी गुस्सेनाक (कुंडलिया )
पारा बढ़ता जा रहा, गर्मी गुस्सेनाक (कुंडलिया )
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पारा बढ़ता जा रहा, गर्मी गुस्सेनाक
जल-भुनकर ज्यों कह रही, कर दूंगी सब खाक
कर दूंगी सब खाक , पेड़ से छाया मॉंंगो
ओ मनुष्य अविवेक ,नींद से अब तो जागो
कहते रवि कविराय, चक्र है बिगड़ा सारा
कटते देखे पेड़ , चढ़ा कुदरत का पारा
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रचयिता :रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर( उत्तर प्रदेश)
मोबाइल999 7615451