पाप मती कर प्राणिया, धार धरम री डोर। पाप मती कर प्राणिया, धार धरम री डोर। जमड़ा घेरो घालसी, जाबक चलै न जोर।। जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया…✍️