पापा के दिए संस्कार
शीर्षक: पापा के दिये संस्कार
मेरी ख़ामोशी का मतलब
यह नहीं कि मुझे दर्द नहीं होता
या मुझे कुछ समझ नहीं आता
मैं रिश्तों को निभाना जानती हूँ
पापा के दिये संस्कार हैं मुझमे
शायद इसलिए ही चुप हूँ
बोलना मुझे भी आप सा ही आता हैं पर
रुक जाती हूँ अपने संस्कारो से क्योंकि मैं
रिश्तों को अहमियत देती हूँ और ऐसे कब तक
आख़िर कब तक मैं यूँ ही दर्द सहती रहूँ
मुझे भी दर्द का अहसास होता हैं
पर पापा के दिये संस्कार हैं मुझमे
क्यों मुझे कभी समझा नहीं गया..?
कभी तो अपनापन दिखाया होता.. कभी तो !!
बहुत हुआ अब नहीं होता मुझसे ये सब बर्दास्त
मुझे भी दर्द होता होगा क्या कभी सोचा गया ये
मेरी ख़ामोशी का मतलब
ये नहीं की मुझे कुछ पता नहीं चलता
बस पापा के दिये संस्कार
मैं भी इंसान हूँ आप जैसा ही दुख सुख होता हैं मुझे भी
कभी क्यों नहीं समझा गया मुझे भी इंसान..?
आखिर मैं भी तुम जैसी हूँ
मैं भी इंसान हूँ दर्द होता हैं मुझे भी
पर पापा के दिये संस्कार
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद