*”पापा की परी लाडली”*
“पापा की लाडली”
उंगली पकड़कर हाथ थामते हुए ,दुनिया की सैर पे निकल जाती है।
दूर क्षितिज प्राकृतिक दृश्यों का अवलोकन करने निकल पड़ती है।
अच्छे बुरे कर्मों को परखने के लिए, दिशा निर्देश पापा समझाते है।
संघर्षो से कैसे जूझते ये जीवन की आस बंधाते उम्मीद जताते है।
रोज सुबह सैर पर निकलते ,मनोरम दृश्य निहारते चले जाते हैं।
बेटी की जिज्ञासु मन को समझाते हुए मार्गदर्शन प्रेरणा बन जाते है।
संस्कार व्यक्तित्व की अदभूत छबि पहचान बनाते हैं।
सुख दुख उतार चढ़ाव में धैर्य रखना सिखलाते।
ऊँचे मुकाम सपनो की मंजिल तय करने हौसला अफजाई बढ़ाते जाते हैं।
सच्चे दोस्त बनकर हर बात गौर से सुनते,हर फ़रमाइशें पूरी करते जाते हैं।
पापा की हर बात निराली ,बेटी के लिए आदर्श पिता बन जाते है।
जन्म से पहले यही सोचते ,प्यारी सी परी बेटी होने का ही आस लगाते हैं।
उच्च संस्कारों में पली बढ़ी ,बेटियाँ दो कुलों को तार देती है।
विदाई की घड़ी में ,ससुराल जाते हुए बेटी को रोते हुए गले लगाते आँसू छिपा लेते हैं।
*पापा की लाडली परी ,उच्च संस्कारों में पली बढ़ी दो कुलों का नाम रोशन खुशियाँ समेट लेती है।
*यूँ तो बेटियां पापा की लाडली ,ममतामयी लाड़ जताती हरदम दिल में समाए रहती है।
शशिकला व्यास✍️