Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
19 May 2024 · 6 min read

पांच लघुकथाएं

1 युग-विडम्बना [लघुकथा ]
सावित्री की बेटी पारो के ससुराल से फोन आया ,पारो के लड़का हुआ है |बूढ़ी विधवा माँ बहुत खुश हुई |नानी बनने पर उसे पूरे मोहल्ले के परिचितों से खूब बधाइयाँ मिलीं |फिर कुछ समय बाद पारो का फोन आया ,मम्मी मेरे यहाँ आना तो जरा नाक से आना | पहली बार पारो की शादी के समय डिमांड उसके ससुराल वालों की थी |तब उसने अपने गहने व जमा पूँजी निकल कर पारो की शादी खूब धूमधाम से कर दी थी | अब की बार डिमांड उसकी अपनी बेटी पारो की थी |यद्यपि पारो माँ की परिस्थितियों से अच्छी तरह परिचित थी | माँ ने दोनों बेटों से पारो के फोन की बात कही ,परन्तु दोनों ने अपनी – अपनी तंगी का रोना रोकर हाथ खड़े कर दिए |तब सावित्री ने अपनी बची दो सोने की चूडियाँ बेचकर दोहते के लिए चेन बनवाई और पूरे परिवार के लिए कपड़े खरीदे | फल और मिठाइयां टोकरे में बांध पारो के यहाँ हो आई | पारो के ससुराल में उसके मायके की नाक तो बच गई परन्तु बूढ़ी माँ जब वापिस घर आई तो उस पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा | चूडियाँ बेचने की बात सुनकर बेटे – बहुएं उससे इस कदर खीझ गये कि कलह क्लेश के बाद उसे दो रोटियां भी देना उन्होंने मुनासिब नहीं समझा | अब सावित्री मंदिर में सेवा करके अपनी दो रोटियां व बुढ़ापे कि दवाइयों का खर्च चलती है और वहीँ मंदिर की धर्मशाला के एक टूटे –फूटे कमरे में घुट –घुट कर अपना बुढ़ापा ढो रही है | उधर बेटों –बहुओं का कहना है कि माँ जी का रुझान भगवान की ओर हो गया है |वह अब घर के बंधन में बंधकर नहीं रहना चाहती | इसलिए वह सन्यस्त हो गई हैं और अब घर नहीं आतीं ||

2
सुगंध- दुर्गंध [लघुकथा ]

मेरे घर के पास ही अपने पिल्लों के साथ एक कुतिया नाली के बगल में पड़े कूड़े के ढेर पर अपने तथा पिल्लों के लिए रोटी तलाश लेती थी ।आज रात भारी बर्फवारी हुई । कूड़े का ढेर बर्फ में दब गया था । कुतिया अपने पिल्लों को लेकर मेरे कमरे के सामने बन रहे नये मकान में आ गई । मकान के एक कमरे में सीमेंट की खाली बोरियां पडी थीं । उसने वहीँ अपना डेरा जमा लिया था । दिन जैसे – जैसे चढ़ने लगा भूखी कुतिया के स्तनों को भूखे पिल्ले चूस – चूस कर बुरा हाल करने लगे । शायद स्तनों से निकलता दूध उनके लिए पर्याप्त नहीं था । भूखे पिल्लों की चूं – चूं की आवाजें हमारे कमरे तक आ रही थीं । मेरी पत्नी ने जब यह दृश्य देखा तो रात की बची रोटियां लेकर उस कमरे की ओर चल दी । मैं खिडकी से ये सब देखे जा रहा था । जैसे ही वह वहाँ पहुंची कुतिया उसे देखकर जोर जोर से भौंकने लगी ।ऐसे लगा मानो वह मेरी पत्नी पर टूट पड़ेगी । तभी मेरी पत्नी ने उसे प्यार से पुचकारा और रोटियां तोड़कर उसके मुंह के आगे डाल दीं ।अब कुतिया आश्वस्त हो गई थी कि उसके बच्चों को कोई खतरा नहीं है । कुतिया ने रोटी सूंघी और एक तरफ खड़ी हो गई । भूखे पिल्ले रोटी पर टूट पड़े । कुतिया पास खड़ी अपने पिल्लों को रोटी खाते देखे जा रही थी । सारी रोटी पिल्ले चट कर गये । भूखी कुतिया ने एक भी टुकड़ा नहीं उठाया ।मातृत्व के इस दृश्य को देख कर मेरा हृदय द्रवित हो उठा और इस मातृधर्म के आगे मेरा मस्तक स्वतः नत हो गया । मेरा मन भीतर ही भीतर मानो सुगंध से महक उठा ।

तभी मैंने दरवाजे पर पड़ा अखबार उठाया और देखा , यह खबर हमारे शहर की ही थी । कोई महिला अपनी डेढ़ साल की बच्ची को जंगल में छोड़कर अपने प्रेमी संग फरार हो गई थी इस उद्देश्य से कि शायद कोई हिंसक जानवर इसे खा जायेगा ।आर्मी एरिया होने के कारण पैट्रोलिंग करते जवानों ने जंगल से बच्ची के रोने की आवाजें सुनी तो उसे उठा लाए और पुलिस के हवाले कर दिया । फोटो में एक महिला पुलिस कर्मी की गोद में डेढ़ साल की बच्ची चिपकी थी । पिता को बच्ची कानूनी प्रक्रिया पूरी होने के उपरांत ही सौंपी जानी थी । खबर को पढ़ने के उपरांत दोनों दृश्य मेरे मानस पटल पर रील की भांति आ जा रहे थे । अब इस खबर की दुर्गंध से मेरा मन कसैला हो गया था ।

3
घाटे का सौदा [लघुकथा]
सूरज के मोबाईल पर मैसेज आया कि देश के साहित्यकारों की रचनाओं का एक वृहद ग्रन्थ प्रकाशित हुआ है | जिसमें वह भी शामिल है | उसकी भी दो रचनाओं को स्थान मिला है | मैसेज पढ़कर उसे बहुत ख़ुशी हुई | उसे याद आया लगभग एक वर्ष पहले उसने इस वृहद ग्रन्थ के लिए अपनी रचनाएँ भेजी थीं | उसने तुरंत उस नम्बर पर फोन लगाया | किसी भद्रजन ने फोन उठाया बड़े अदब से बात की | जब सूरज ने ग्रन्थ की प्रति लेने के लिए कहा तो उन्होंने बताया किआप हमारे बैंक खाते में मात्र छः सौ रूपये जमा करवा दें | राशी मिलते ही एक प्रति आपको रजिस्टर्ड डाक से भेज दी जाएगी | छः सौ रुपये सुनते ही उसकी रचना – प्रकाशन की ख़ुशी एकदम ठंडी पड़ गई | बेरोजगार सूरज को कवितायेँ लिखना भी घाटे का सौदा लगने लगा | उसने चुपचाप फोन काट दिया ||
4
कर्जमुक्त [लघुकथा ]
एक वक्त था , सेठ करोड़ीमल अपने बहुत बड़े व्यवसाय के कारण अपने बेटे
अनूप को समय नहीं दे पा रहे थे | अतः बेटे को अच्छी शिक्षा भी मिल जाये और व्यवसाय में व्यवधान भी उत्पन्न न हो इसलिए दूर शहर के बोर्डिंग स्कूल में
दाखिल करवा दिया | साल बाद छुट्टियाँ पडतीं तो वह नौकर भेज कर अनूप को घर
बुला लाते | अनूप छुट्टियाँ बिताता स्कूल खुलते तो उसे फिर वहीँ छोड़ दिया जाता| वक्त बदला, अब अनूप पढ़-लिख कर बहुत बड़ा व्यवसायी बन गया और सेठ करोड़ी मल बूढ़ा हो गया | बापू का अनूप पर बड़ा क़र्ज़ था | उसे अच्छे स्कूल में जो पढ़ाया – लिखाया था | बापू का सारा कारोबार बेटे अनूप ने खूब बढ़ाया – फैलाया | कारोबार में अति व्यस्तता के कारण अब अनूप के पास भी बूढ़े बापू के लिए समय नहीं था | अतः अब वह भी बापू को शहर के बढ़िया वृद्धाश्रम में छोड़ आया और फुर्सत में बापू को घर ले जाने का वायदा कर वापिस अपने व्यवसाय में रम गया | वृद्धाश्रम का मोटा खर्च अदा कर अब वह स्वयं को कर्जमुक्त महसूस कर रहा था ||
5
औजार
सोहन का तबादला दूर गांव के हाई स्कूल में हो गया |शहर की आबो –हवा छूटने लगी |पत्नी ने सुझाव दिया,कल हमारे मोहल्ले में नये बने शिक्षा मंत्री प्रधान जी के यहाँ आ रहे हैं | क्यों न माताजी को उनके सामने ला उनसे ,मंत्री जी से तबादला रोकने की प्रार्थना करवाई जाये | शायद बूढ़ी माँ को देख मंत्री जी पिघल जाएँ और तबादला रद्द करवा दें | सोहन को सुझाव अच्छा लगा |वह शाम को ही गाँव रवाना हो गया और बूढ़ी माँ को गाड़ी में बैठा सुबह मंत्री जी के पहुंचने से पहले ही प्रधान जी के घर पहुँच गया |ठीक समय पर अपने लाव –लश्कर के साथ मंत्री जी पहुँच गये | लोगों ने अपनी –अपनी समस्याओं को लेकर कई प्रार्थना –पत्र मंत्री महोदय को दिए | इसी बीच समय पाकर सोहन ने भी अपनी बूढ़ी माँ प्रार्थना –पत्र लेकर मंत्री जी के सम्मुख खड़ी कर दी | कंपती-कंपाती बूढ़ी माँ के हाथ के प्रार्थना –पत्र को मंत्री जी ने स्वयं लेते हुए कहा –बोलो माई क्या सेवा कर सकता हूँ |तब बूढ़ी माँ बोली –साहब मेरे बेटे की मेरे खातिर बदली मत करो ,इसके चले जाने से इस बूढ़ी की देखभाल कौन करेगा |शब्द इतने कातर थे कि मंत्री जी अंदर तक पिघल गये |बोले –ठीक है माई ,आपके लिए आपके बेटे की बदली रद्द कर दी गई |उन्होंने साथ आये उपनिदेशक महोदय को कैम्प आर्डर बनाने को कहा |कुछ ही देर में तबादला रद्द होने के आर्डर सोहन के हाथ में थे | सोहन और बूढ़ी माँ मंत्री जी का धन्यवाद करते हुए घर आ गये |शाम की गाड़ी में सोहन ने बूढ़ी माँ गांव भेज दी | अब पत्नी भी खुश थी और सोहन भी ,उनका आजमाया औजार चल गया था ….||

1 Like · 136 Views

You may also like these posts

” भेड़ चाल “
” भेड़ चाल “
ज्योति
हरियाली तीज
हरियाली तीज
RAMESH SHARMA
* कभी दूरियों को *
* कभी दूरियों को *
surenderpal vaidya
* मुस्कुराते हैं हम हमी पर *
* मुस्कुराते हैं हम हमी पर *
भूरचन्द जयपाल
*लाल सरहद* ( 13 of 25 )
*लाल सरहद* ( 13 of 25 )
Kshma Urmila
सलाह के सौ शब्दों से
सलाह के सौ शब्दों से
Ranjeet kumar patre
क्या कहेंगे लोग
क्या कहेंगे लोग
Surinder blackpen
3711.💐 *पूर्णिका* 💐
3711.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
*शुभ स्वतंत्रता दिवस हमारा (बाल कविता)*
*शुभ स्वतंत्रता दिवस हमारा (बाल कविता)*
Ravi Prakash
"असफलता"
Dr. Kishan tandon kranti
आइए मेरे हृदय में
आइए मेरे हृदय में
indu parashar
दिल पर साजे बस हिन्दी भाषा
दिल पर साजे बस हिन्दी भाषा
Sandeep Pande
रिश्ते बनते रहें इतना ही बहुत हैं, सब हँसते रहें इतना ही बहु
रिश्ते बनते रहें इतना ही बहुत हैं, सब हँसते रहें इतना ही बहु
ललकार भारद्वाज
..
..
*प्रणय*
16) अभी बाकी है...
16) अभी बाकी है...
नेहा शर्मा 'नेह'
विश्वास
विश्वास
Dr fauzia Naseem shad
समाज का अलंकार
समाज का अलंकार
Rambali Mishra
वक्त अपनी करवटें बदल रहा है,
वक्त अपनी करवटें बदल रहा है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
*My Decor*
*My Decor*
Poonam Matia
मूक संवेदना🙏
मूक संवेदना🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
जाय फिसल जब हाथ से,
जाय फिसल जब हाथ से,
sushil sarna
सोचना नहीं कि तुमको भूल गया मैं
सोचना नहीं कि तुमको भूल गया मैं
gurudeenverma198
ग़ज़ल _ क्या हुआ मुस्कुराने लगे हम ।
ग़ज़ल _ क्या हुआ मुस्कुराने लगे हम ।
Neelofar Khan
चांद की चंद्रिका
चांद की चंद्रिका
Utkarsh Dubey “Kokil”
Thought
Thought
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
कविता -- भारत फिर विश्व गुरु बन जाएगा
कविता -- भारत फिर विश्व गुरु बन जाएगा
Ashok Chhabra
वो मेरा है
वो मेरा है
Rajender Kumar Miraaj
आगे पीछे का नहीं अगल बगल का
आगे पीछे का नहीं अगल बगल का
Paras Nath Jha
युद्ध लड़ेंगें जीवन का
युद्ध लड़ेंगें जीवन का
Shweta Soni
"माला"
Shakuntla Agarwal
Loading...