पहाड़
आँखे खूली है फिर भी
कुछ दिखाई नहीं दे रहा
चारों तरफ है अंधेरा
मानो सामने एक पहाड़ हो
और उस ओर से
रोशनी आ नही पा रहा,
यह पहाड़ है –
अधर्म-अन्याय-विश्वासघात की,
आदमी की झूठी अंहकार की,
दिन-ब-दिन बढ़ते महंगाई की,
नेताओं की झूठी वादों की,और
ईश्वर की झूठी आराधना की;
दिन-ब-दिन यह पहाड़
ऊंची हो जा रही है
और इन्सान अन्धे
बनते जा रहे है ।