पहले तो मुहब्बत में गिरफ़्तार किया है,
पहले तो मुहब्बत में गिरफ़्तार किया है
फिर पुश्त के पीछे ही नया वार किया है,
इक तू कि मेरे वास्ते फ़ुर्सत नहीं तुझको ,
इक मैं कि हर इक रोज़ को इतवार किया है,
तुम इश्क़ को नाकाम बताने लगे कब से,
लगता है तुम्हें उम्र ने बीमार किया है ,
अपने ही तलक रक्खो तुम अपनी ये नसीहत,
हम ने बड़ी शिद्दत से उसे प्यार किया है,
लोगों से गले मिलना फ़सादात में अपना,
इक आग का दरिया था जिसे पार किया है,
©अशफ़ाक़ रशीद•