पहली मुलाकात
जब होगी पहली मुलाकात,तो कुछ न कह पाऊँगी।
पर हां अपनें साथ 1 छोटा सा लिफाफा जरूर लाऊँगी ।।
करती हूँ अक्सर कल्पना की देखूंगी तेरी आँखों में
पर सच कहूँ.. शर्म से मैं उन झुकी नजरों को उठा न पाऊँगी ।।
यूँ तो अक्सर हुईं हैं, कुछ बातें फोन पर । पर प्रेम की मुखरता से मैं सकुचा जाऊँगी ।। प्रेयसी, प्रियतमा से अर्धांगिनी का सफर मन में उम्मीदों का अम्बार लाऊँगी ।।
यूँ तो कुछ अनकहे अधिकार भी दिए हैं तुमनें,
पर छूकर चरण रज तेरी.. मीरा मैं श्याम बन जाऊँगी ॥
ये संस्कार हैं और भारत की मिट्टी है ऐसी, त्याग की सारी नज्में हैं मैनें पढ़ी।।
तेरी मीरा के संग तेरी राधा बनूँ, रुक्मिणी का किरदार भी मैं जियूँ ॥
हमारें दरमियां न आये कोई दूसरा, मैं इतना चाहूँगी।
गर प्रेम की प्रखरता तुममें मुझ सी नहीं, तो पहली मुलाकात का भी कोई औचित्य नहीं । ।
गर हो तुम भी शिव से अटल तो जप तप करूँ पार्वती बन जाऊँगी
जब होगी पहली मुलाकात तो कुछ न कह पाऊँगी,
पर हां अपने साथ एक छोटा सा लिफाफा जरूर लाऊँगी।