पहली बरसात ….
पहली बरसात ….
मेघों की गर्जन
नर्तन करती दामिनी
फुहारों में भीगी मस्त समीर
वातायन के पटों का शोर
करवटों की रात
लो फिर आ गई
वस्ल की यादें लिए
वो पहली मुलाकात की
पहली बरसात
वो चेहरे से उसका
बूंदे हटाना
वो समीर से उलझी
लटें सुलझाना
वी नजरें झुकाकर
जरा मुस्कुराना
सच
कहाँ भूलेगी
वो शर्मीली सी बात
लो फिर याद आ गई
वो पहली मुलाकात की
पहली बरसात
बारिश की बूंदों से
बढती अगन वो
स्पर्शों की आँधी में
बहकते बदन वो
समर्पण के भावों की हो गई बारिश
हाँ और ना की फिर
हो गई साजिश
सच कहूँ
जह्न से जाती नहीं
वो पहली मुलाकात की
पहली बरसात
सुशील सरना