~पहला जवाब~
मत छेड़,
मत छेड़, कब से कह रहा था तुमसे
बहुत दफा,
प्यार से समझाया
बड़े भाई होने का फर्ज निभाया
दोस्ती का हाथ बढ़ाया
लीक से हट कर गले भी लगाया
मौका दिया भरपूर तुम्हें
मौसम अब नहीं ये
पहले सा मनमोहक
बताने को तुम्हें
शपथ ग्रहण में था बुलाया
पर तुम तो ठहरे अजब नवाज
हरक़तों से अपनी न आये बाज
कभी पठानकोट,
कभी कश्मीर, कभी उरी
जख्म देते रहे हमें और मुस्कुराते रहे
पर अब नहीं और
हरकतों का तुम्हारी
माक़ूल जवाब मिलेगा
बहायी जो एक भी बूँद
खून की मेरे जवान की तूने
तेरी हर गली में बहता खून का सैलाब मिलेगा…
…विनोद चड्ढा…