पलकें बिछा दी है
बरसात की बूँदों ने फिर आग लगा दी है
चाहत के च़रागों को मौसम ने हवा दी है
भीगी हुई अँखियों से बारिश के महीने में
टूटे हुए पत्तों ने शाखों को सदा दी है
वो सारे गिले-शिकवे दिल भूल गया क्योंकी
बौछार ने मिट्टी की दीवार गिरा दी है
भीगे हुए हाथों से छूकर के बदन मेरा
इस दिल के धड़कन की रफ्तार बढ़ा दी है
जज़्बात जगे दिल के मदमस्त हुए भँवरे
फूलों को हवाओं ने ये बात बता दी है
राहों में बिछे काँटे मौसम ने बुहारे जब
कदमों के तले हमने भी पलकें बिछा दी है