*परिमल पंचपदी— नवीन विधा*
परिमल पंचपदी— नवीन विधा
27/07/2024
(1) — प्रथम, द्वितीय पद तथा तृतीय, पंचम पद पर समतुकांत।
रोता है।
उम्मीदें बोता है।।
हो गया जहाँ जो होना था।
इतनी दूर चलने के बाद भी,
मुझे पता था तुमको एक दिन खोना था।।
(2)– द्वितीय, तृतीय पद तथा प्रथम, पंचम पद पर तुकांत।
खोता है।
जब भी अपना।
टूटता है सारा सपना।।
अब तो जीवन बोझ सा लगता,
व्यक्ति अपना शव अपने कंधे ढोता है।
(3)— प्रथम, तृतीय एवं पंचम पद पर समतुकांत।
होता है।
होकर रहेगा,
तू क्यों नयन भिगोता है।
समय के हाथों का मोहरा है तू,
अपने भविष्य पर काँटे क्यो चुभोता है।।
(4)—- संपूर्ण पंच पद अतुकांत।
ढोता है।
सबके बोझ को
तू जल्दी बूढ़ा हो जायेगा
मृतक पार्थिव शरीर के लिए
चार कंधे का भी जुगाड़ बनाकर चल।
— डॉ रामनाथ साहू ‘ननकी’
छंदाचार्य, बिलासा छंद महालय