*परिमल पंचपदी— नवीन विधा*
परिमल पंचपदी— नवीन विधा
22/08/2024
(1) — प्रथम, द्वितीय पद तथा तृतीय, पंचम पद पर समतुकांत।
अपत।
करते असत।।
भावना शून्य व्यवहार।
अनिष्ट होने का कोई दुख नहीं,
बड़े विचित्र होते हैं इनके किरदार।।
(2)– द्वितीय, तृतीय पद तथा प्रथम, पंचम पद पर तुकांत।
चपत।
लगाया प्यार से।
लूटा बड़े ही सत्कार से।।
आज भी यही कार्य करता होगा,
मैंने सुना है अब हो चुका वह अछत।।
(3)— प्रथम, तृतीय एवं पंचम पद पर समतुकांत।
अनत।
कब होंगे यहाँ,
सच्चे हृद से अवनत।
ये तो आशा ही नहीं की जा सकती,
कभी किसी के सामने गिरेंगे दण्डवत।।
(4)—- संपूर्ण पंच पद अतुकांत।
खपत
बढ़ती ही जाये
उत्पादन कम होते हैं
जनसंख्या की असीम बढ़ोत्तरी
देश की प्रधान समस्याओं में से एक है।
— डॉ रामनाथ साहू ‘ननकी’
छंदाचार्य, बिलासा छंद महालय