*परिमल पंचपदी— नवीन विधा*
परिमल पंचपदी— नवीन विधा
20/08/2024
(1) — प्रथम, द्वितीय पद तथा तृतीय, पंचम पद पर समतुकांत।
ये दादी।
है यथार्थवादी।।
अनुभवों की होती पुंज।
चलती फिरती गूगल होती है,
आशीर्वाद खुशियों से है महकती कुंज।।
(2)– द्वितीय, तृतीय पद तथा प्रथम, पंचम पद पर तुकांत।
ये शादी।
जन्मों का बंधन।
ईश के माथे का चंदन।।
मन से निभाये जाते आजीवन,
विश्वास की जड़ें अचल होती बुनियादी।।
(3)— प्रथम, तृतीय एवं पंचम पद पर समतुकांत।
ये वादी
डरता रहता
शत्रुता करे फरियादी
निर्णय वह जानता जरूर है
इसीलिए सहता है अपनी बरबादी।
(4)—- संपूर्ण पंच पद अतुकांत।
ये गादी
हथियाने वाले
नजदीक के ही होते हैं
जो सारे भेद को जानता रहता
सतर्क रहने की जरुरत उसी से है।
— डॉ रामनाथ साहू ‘ननकी’
छंदाचार्य, बिलासा छंद महालय