परिमल पंचपदी – नवीन विधा
परिमल पंचपदी— नवीन विधा
यह नवप्रस्तारित, नव विधा, पाँच पंक्तियों में लिखा जाने वाला वार्णिक पंचपदी है। इसे क्रमशः 3,6,9,12,15 वर्ण संख्या पर लिखा जाता है। प्रथम पंक्ति की शुरुआत तीन वर्ण युक्त शब्दों से की जाती है। तीन वर्णों में (111 सपने ), (1-11 तू नहीं ) (11-1 आज भी ) तरह के शब्द भी रख सकते हैं।भावों में सरसता एवं गेयता अबाधित हो इसका ध्यान रहे। परिमल पंंचपदी के लेखन की चार विधियां हैं।
उदाहरण सहित विधान —
(1) — प्रथम, द्वितीय पद तथा तृतीय, पंचम पद पर समतुकांत।
त्रासदी।
लिख पंचपदी।।
प्रारम्भ बीच अद्यतन।
कर ले अंकित हर संवेग को,
अद्भुतालय पर अब से छंद सृजन।।
(2)– द्वितीय, तृतीय पद तथा प्रथम, पंचम पद पर तुकांत।
त्रैलोक्य।
जिसकी है सत्ता।
अवज्ञा करेगा क्या पत्ता।।
किसी को वह साहस दिया नहीं,
आविष्कार ही नहीं किया बगावती रोक्य।।
(3)— प्रथम, तृतीय एवं पंचम पद पर समतुकांत।
त्रिशूल।
स्वर व्यंजन का,
नाद नृत्य का आदि मूल।
देवाधिदेव महादेव का अस्त्र,
पंचाक्षरी से कर लो अपने अनुकूल।।
(4)—- संपूर्ण पंच पद अतुकांत।
त्रुटियाँ
अवसर देते
चिंतन को बदलने का।
ये आभास कराते हर जीव को
एक है पूर्ण ब्रह्म, शेष सभी अपूर्ण हैं।
— डॉ रामनाथ साहू ‘ननकी’
छंदाचार्य, बिलास छंद महालय