*परिमल पंचपदी— नवीन विधा*
परिमल पंचपदी— नवीन विधा
06/08/2024
(1) — प्रथम, द्वितीय पद तथा तृतीय, पंचम पद पर समतुकांत।
सम्पर्क।
ज्ञान का है अर्क।।
छूटती जब सुसंगत।
कुविचारों का होता है आक्रमण,
दुष्प्रवृत्तियों की रोज लगती है पंगत।।
(2)– द्वितीय, तृतीय पद तथा प्रथम, पंचम पद पर तुकांत।
कुतर्क।
ठीक नहीं कभी।
ईर्ष्या से हैं प्रेरित सभी।।
ज्ञानार्जन से जी चुराने वाले ही,
मनुष्य के रूप में चलते फिरते कर्क।।
(3)— प्रथम, तृतीय एवं पंचम पद पर समतुकांत।
सतर्क।
कुकर्मों से रहें,
कभी नहीं भोगेंगे नर्क।।
जिसने भी विधि अनुसार जिया,
जीवन का हर सुख पाया है मधुपर्क।।
(4)—- संपूर्ण पंच पद अतुकांत।
वितर्क
बुद्धिमत्ता नहीं
अल्पज्ञता का द्योतक है
विचार विरोधी बनने से अच्छा
सहयोगी बनें, सम्मान बटोरें श्रीमंत।
— डॉ रामनाथ साहू ‘ननकी’
छंदाचार्य, बिलासा छंद महालय