*परिमल पंचपदी— नवीन विधा*
परिमल पंचपदी— नवीन विधा
03/08/2024
(1) — प्रथम, द्वितीय पद तथा तृतीय, पंचम पद पर समतुकांत।
पंगत।
बैठे एक छत।।
करते उसकी बुराई।
खाते दाल भात पापड़ पनीर,
जिसकी मृत्यु हुई है आज ही दुखदाई,
(2)– द्वितीय, तृतीय पद तथा प्रथम, पंचम पद पर तुकांत।
रंगत।
है परिवर्तित।
भावनाएँ थी कलुषित।।
मेरे मरने की प्रतीक्षा थी उसे,
साँसे अटक कर चल रही थी संतत।।
(3)— प्रथम, तृतीय एवं पंचम पद पर समतुकांत।
संगत।
बहुत बुरा हुआ,
आज ही हुआ दिवंगत।
घर में बटवारे की स्थिति बनी,
किसी भी सदस्य में दिखाई न दे संयत।।
(4)—- संपूर्ण पंच पद अतुकांत।
चंपत
हुआ राहगीर
खूब मनमानी करके
खबर आई है मेरे कानों तक
बहुत रोता है अक्सर पछताते हुए।
— डॉ रामनाथ साहू ‘ननकी’
छंदाचार्य, बिलासा छंद महालय