परिदृश्य
धर्मांधता का जुनून सर चढ़कर बोल रहा है,
देश के सांप्रदायिक सद्भाव में ज़हर घोल रहा है,
चंद सरफिरे नौजवान धर्म के ठेकेदार बन गए हैं ,
संकीर्ण मानसिकतायुक्त अपने आकाओं के
इशारे पर नाच रहे हैं ,
अपने कृत्यों से निरीह जनता को
त्रस्त कर रहे हैं ,
पुलिस एवं प्रशासन भी
मूकदर्शक से बने हुए हैं ,
न्यायालय न्याय की गुहार न सुनकर
बधिर से बने हुए हैं,
राजनीतिक वर्चस्व के संघर्ष में राष्ट्रीय
अस्मिता दांव पर लगी है ,
देश में सांप्रदायिक सहअस्तित्व की
भावना खतरे में पड़ी है ,
देश के राजनेताओं को अपनी राजनीतिक
रोटियां सेंकने की पड़ी है ,
देश की आम जनता सब देखते
किंकर्तव्यविमूढ़ सी खड़ी है ,
इन मतिभष्टों को यह पता नही कि वे
इतिहास के प्रमाणों को कभी मिटा न सकेंगे ,
धर्मांध मानसिकता फैला जनसाधारण निहित सहअस्तित्व भावना कभी नष्ट न कर सकेंगे ,
कुत्सित प्रयासों से देश की जनता को
न बांट सकेंगे ,
देश की अखंडता विछिन्न कर अपने मंतव्य में कभी न सफल हो सकेंगे ।