परिदृश्य
ऋतु बदले और बदले काल,
जीवन का यह अंर्तजाल,
कई चरित्र का रंगमंच यह,
कितने चित्रण लाता निकाल…
सुख का अनुभव पूर्वाह्न है,
दुख से परिचय अपराह्न है,
यही अनिश्चित असमंजस,
लिखा काल ने हर कपाल…
कोई कर्म सिद्धि का साधक है,
कोई भाग्य का ही गुणग्राहक है,
समयबद्ध सब स्वांग यहाँ है,
क्या नरपति क्या द्वारपाल…
जो आज की ये अभिव्यक्ति है,
कल किसमें बदले क्या जानें,
परिदृश्य पटल के पलटें कब,
कैसा आ जाऐ कब भूचाल…
©विवेक’वारिद’*