परिणय बंधन
मन मंदिर में तुझे बिठाकर, प्रेम पुष्प बरसाऊँगा।
प्राणप्रिया इस उर आलय की, देवी तुम्हें बनाऊँगा।।
पावन बंधन है परिणय का, आँच नहीँ आने दूँगा।
डगर कठिन चाहे हो जितनी, मान नहीं जाने दूँगा।।
सप्तसुरों में तुझे पिरोकर, गीत मगन हो गाऊँगा।
प्राणप्रिया इस उर आलय की, देवी तुम्हें बनाऊँगा।।
तुम्हें रखूँगा प्रतिपल दृग में, दूर कठिन है रह पाना।
तुम भी मुझको हिय में रखना, हाथ छुड़ाकर मत जाना।।
प्रेम सुधा बन साथ रही जो, प्रेमामृत बन जाऊँगा।
प्राणप्रिया इस उर आलय की, देवी तुम्हें बनाऊँगा।।
कर से कर का वरण किया है,जीवन भर बस प्यार रहे।
आज नेह जो बरस रहा है, नेह यही रसधार बहे।।
दिये वचन जो सात तुम्हे हैं,प्रतिपल शुभे! निभाऊँगा।
प्राणप्रिया इस उर आलय की, देवी तुम्हें बनाऊँगा।।
✍️पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’