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7 Jan 2021 · 5 min read

*”पराधीन सपनेहुँ सुख नाही”*

“पराधीन सपनेहुँ सुख नाही”
पराधीन अर्थात दूसरों पर निर्भर आश्रित रहना दूसरे पर आधीन रहकर व्यक्ति कभी सुख का आनंद नही ले सकता है।पराधीन एक अभिशाप है ,जो मनुष्य को ही नही वरन पशु पक्षियों को भी छटपटाने के लिए मजबूर कर देता है।
जीवन में सारी सुख सुविधाओं होने के बाबजूद भी सुख से वंचित रह जाता है ,सभी चीजें व्यर्थ लगने लगती है। पराधीनता बहुत कष्टप्रद दुखदायी जीवन होता है इसे पाप भी माना गया है और स्वाधीनता को पुण्य माना गया है।
व्यक्ति जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त स्वतंत्र रहना चाहता है कभी भी किसी के परवश में आधीन रहने को तैयार नही होता है।
चाहे मनुष्य हो या पशु पक्षी सभी पराधीन में दुख कष्ट पाते हैं सुख का अनुभव नही होता है जैसे किसी पक्षी या जानवरों को पिंजरे कैद कर लो घर पर किसी खूंटे से बांध दे तो वह विचलित घुटन महसूस करता है उसे लगता है कब आजाद हो स्वतंत्र होकर बाहर खुले हवाओं में सांस लूँ आजाद हो स्वतंत्र रूप से जीवन जी सकूँ।
स्वत्रंत्रता सेनानी ने कहा था –
“स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है”
इसे हम लेकर ही रहेंगे।
पराधीन व्यक्ति या पशु पक्षियों को भले ही अच्छा खाना भोज्य पदार्थ फल मिले लेकिन जब वह खुद स्वतंत्र हो तो रूखा सूखा कुछ भी मिल जाये उसे सब कुछ अच्छा लगता है।
पराधीनता किसी को भी पसंद नहीं है क्योंकि अपने मन की बात पूरी नही हो पाती अपने भावनाओं जज्बातों को सपनों को दबाकर रखना पड़ता है।एक दूसरे पर आश्रित रहकर सामने वाले का मुँह ताकना पड़ता है। खुलकर किसी के सामने अपनी मन की बातों को भी नही रख सकते हैं।
मनुष्य स्वतंत्र रूप से जीवन जीना चाहता है किसी दूसरे व्यक्ति पर आश्रित नही रहना चाहता कभी अपने ही कर्म आड़े आ जाते हैं कभी निर्दोष हो जाने के कारण चक्रव्यूह में फंस जाता है।कभी अपने आलस्य के कारण भी पराधीन हो जाता है।कोई कार्य स्वयं न करके दूसरों पर आश्रित रहता है और बस बैठे ही बैठे सब कुछ मिल जाये इसी आशा में निठल्ला निक्कमा कामचोर बन जाता है।
“जब बैठे बैठे मिले हैं खाने तो क्यों जाय कमाने” वाली बात लागू होती है।
आलसी व्यक्ति खुद तो कुछ काम करता नही फिर दूसरों को दोष देता है कि माता पिता ने पढ़ाया नही पैसे नही दिए जो काम करना चाहता था वो मुझे करने नही दिया या फिर कहते हैं कि मेरी किस्मत ही अच्छी नही भाग्य को दोषी ठहराते हुए यूँ ही बैठे हुए जीवन गुजार देते हैं।
पराधीन व्यक्ति का कोई अस्तित्व भी नही रहता कभी भी कोई भी अपमानित करते रहता है फिर बहुत बुरा लगता है।
किसी बंदीगृह के कैदी से पूछे तो पता चलता है कि वह कैसा जीवन जीता है।एक तो खुद की गलती का खामियाजा भुगतना पड़ता है और दूसरों की कड़वी सच्चाई बातों को सुनना पड़ता है। खुली हवा में सांस नही ले सकते है। किसी भी चीजों के लिए एक दूसरे का मुँह ताकना पड़ता है। पराधीन होने पर मशीन की तरह से काम करते रहो दूसरों की आज्ञानुसार चलते रहना पड़ता है। अगर उसे काम पसंद आये तो ठीक वरना वह उग्र आंदोलन ,करने लगता है।
प्रकृति को भी आजादी पसंद है अगर कुदरत के साथ भी कोई छेड़छाड़ करे तो अपना उग्र रूप कहर बरपा देता है। जिससे प्रदूषण ,भूकंप
बाढ़ ,ज्वालामुखी ,ओलावृष्टि ,बेमौसम बारिश गर्मी ,आंधी तूफान खड़ा कर देता है।
फिलहाल सारे विश्व में कोरोना महामारी ने आक्रमण मचा हंगामा किया हुआ है।ये भयानक रूप धारण किये हुए आपदा प्रत्यक्ष रूप से हमारे सामने घटित हो रहा है।
इस आपदाओं में भी व्यक्ति को पराधीन बना दिया है।संपूर्ण तालाबंदी में बेरोजगारी ,भूखमरी ,अत्याचार ,निर्धनता के कारण भी व्यक्ति पराधीन हो गया है।
इस संक्रमण से मानव घरों में कैद होकर रह गया है। व्यवसायों काम धंधा ठप्प हो जाने के कारण भी व्यक्ति निराश हो गया है।
पराधीनता से सीमित हो परेशान हो आत्मविश्वास की कमी से मानसिक तनाव व चिड़चिड़ापन का शिकार हो गया है न जाने इस कठिन परिस्थितियों में गलत कदम भी उठा लेता है।अपनी जान को भी जोखिम में डाल देता है और परिवार वाले भी परेशान हो जाते हैं।
मोदी सरकार ने अभियान चलाया था कि एक दूसरे पर आश्रित रहने के बजाय खुद अपना कार्य करें आत्म निर्भर बनकर उभरे।स्वंय को आगे लाकर अपनी दबी हुई प्रतिभा को उजागर करें ताकि एक दूसरे का सहयोग मिलेगा और कार्य पूर्णतः सम्पन्न होगा। जब हम अपने को किसी कार्य में लगा देंगे तो मनमाफिक कार्यो में रुचि रखने से खुशी भी मिलेगी और एक दूसरे के पराधीन नही रहेंगे।
अंग्रेजों की गुलामी के बंधन से छूटकर आज़ादी ले ली है लेकिन पश्चिमी सभ्यता ,संस्कृतियों को अपनाते जा रहे हैं।इससे भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है जिसके चलते हुए हम स्वतंत्र होने के बाबजूद गुलाम होते जा रहे हैं और पराधीनता की ओर आकर्षित करते जा रहे हैं।इसकी वजह पराधीनता ही है।
पराधीनता से मानसिक स्वास्थ्य ,तनावपूर्ण वातावरण उत्तपन्न होते जा रहा है।बौद्धिक दृष्टिकोण सामाजिक सुरक्षा खोते जा रहे हैं।विकसित गतिविधियों में अवरुद्ध उत्तपन्न हो रहा है।पहले व्यक्ति एक दूसरे की बातों को समझकर कहना मान लेता था आजकल सलाह मशवरा देना भी बुरा असर पड़ता है।लोग एक दूसरे को अपमानित महसूस करते हैं भावनाओं को ठेस पहुंचती है।
हीन भावना आ जाती है दृढ़ इच्छाशक्ति कमजोर पड़ने लगती है आत्मविश्वास की कमी आ जाती है निराशाजनक स्थिति उत्तपन्न हो जाती है किसी को कुछ बोल नही सकते हैं।
सिर्फ समझा सकते हैं अगर मान जाए तो ठीक वरना उसे उसके हाल पर छोड़ दिया जाता है।
पराधीन व्यक्ति की सोचने समझने की शक्ति भी क्षीण होने लगती है।सृजनात्मक कार्यो में रुचि नही रखता है धीरे धीरे मानसिक तनाव ,शारीरिक क्षमता भी कम होने लगती है।
पराधीनता अभिशाप भी है वरदान भी है क्योंकि अगर हम पराधीन होकर भी अपने जीवन को सुधारने की कोशिश करें तो व्यक्ति ,परिवार ,समाजवादी विचारधारा ,जाति भेदभाव से ऊपर उठना चाहे तो पराधीनता को स्वीकार कर स्वाधीनता की सीख ले तो एक दूसरे की कमियों को नजरअंदाज कर दे तो हर कोई स्वाधीनता बन कर स्वतंत्र जीवन जी सकता है।
जियो और जीने दो”
स्वाधीनता में रहकर चाहे मनुष्य हो या पशु पक्षी जंतु जानवर ,प्रकृति सभी खुश रह सकते हैं। हर कोई जीवन में स्वतन्त्रता का अधिकार चाहता है क्योंकि वह नही चाहता कि पराधीन होकर बंधन में कैद हो जीवन बिताये।
जीवन में परेशानियों का हल ढूंढने की कोशिश करें। पराधीन होने पर भी कुछ समस्याओं का समाधान निकालने का प्रयास करें। उदासीनता निराशाओं को दूर कर आशावादी जीवन जीने का संकल्प लें।
आज संकट की घड़ी में न जाने कितने लोगों ने कोरोना पीड़ित रोगी व्यक्ति कितने संघर्षो से जूझते हुए बाहर निकल जीवन यापन कर रहे हैं और कितने अभी संघर्षरत है।
ये कोरोना काल भी पराधीनता से स्वाधीनता का सबक सीखा दिया है।
“गुलामी के बंधनों ने जकड़ा पराधीन सपनेहुँ सुख नाही”
“जंजीरों को तोड़कर आँधी तूफानों से लड़कर स्वाधीनता है पाहि”
यूँ तो हंसकर हर दर्द झेल लेते हैं,
दर्द कैसे बयां करे पराधीन का।
हौसला अफजाई आत्मविश्वास से मजबूत इरादों को जीवन जीने का।
मुसीबतें टल जाती है लाख कोशिशों के बाद,
गुलामी की बंधन की बेड़ियां उतारने के बाद।
*छुप गया कोई रे देश को सुधार के,
गुलामी की बंधन की बेड़ी उतार के।*

शशिकला व्यास

Language: Hindi
Tag: लेख
2 Likes · 1 Comment · 1554 Views
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