पराई
पराई
हक नहीं कुछ भी कहने का और अर्धांगिनी कहीं जाती है,
गठजोड़ों की डोर से बस बन्धी चलीं जाती है।।
इतने साल बाद भी विश्वास तो ना जीत पाई,
पराई घर की आज भी तो कहीं जातीं है।।
सीमा टेलर ‘तू है ना’ (छिम़पीयान लम्बोर)